For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल : जब प्रतीक्षा में पड़ा था मौत के

बह्र -- रमल मुसद्दस महजूफ

२१२२, २१२२, २१२

मैं पपीहा प्यास में मरता रहा,
स्वाति मुझको जानकर छलता रहा,

सर्द गर्मी धूप हो या छाँव हो,
कारवां चलता चला चलता रहा,

श्राप ही ऐसा मिला था सूर्य को,
देवता होकर सदा जलता रहा,

धूल लेकर चल रहीं थी आंधियां,
आँख मैं मलता चला मलता रहा,

बात मन की मन ही मन में रह गई,
दर्द भीतर रोग बन पलता रहा,

जब प्रतीक्षा में पड़ा था मौत के,
वक़्त मुझको वो बड़ा खलता रहा...

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 987

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on September 18, 2013 at 11:10pm

श्राप ही ऐसा मिला था सूर्य को,
देवता होकर सदा जलता चला,.........वाह! गजब का शेर

बात मन की मन ही मन में रह गई,
दर्द भीतर रोग बन पलता चला,........वाह! क्या कहने,

बेहद शानदार गजल, बहुत बहुत बधाई आदरणीय अरुण अनंत जी

Comment by MAHIMA SHREE on September 18, 2013 at 11:02pm

वाह बहुत ही शानदार गज़ल आदरणीय अरुण जी हार्दिक बधाई आपको

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on September 18, 2013 at 10:23pm

अच्छा प्रयास है अरुन जी, बधाई स्वीकारें। मैंने ‘चला’ की जगह ‘गया’ या ‘रहा’ पढ़ा तो मिसरे ज्यादा स्पष्ट लगे।

Comment by Sarita Bhatia on September 18, 2013 at 8:20pm

काबिले तारीफ़ हर अशआर 

श्राप ही ऐसा मिला था सूर्य को,
देवता होकर सदा जलता चला,

बात मन की मन ही मन में रह गई,
दर्द भीतर रोग बन पलता चला,

बहुत बढ़िया ,हार्दिक बधाई ,चला को रहा में बदलना अच्छा लगेगा 

एक संशय दूर करें कारवां या कारवाँ ठीक है यहाँ मात्रा एक सी है 

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on September 18, 2013 at 7:10pm

बात मन की मन ही मन में रह गई,
दर्द भीतर रोग बन पलता चला,

जब प्रतीक्षा में पड़ा था मौत के,
वक़्त मुझको वो बड़ा खलता चला...

प्रिय अनंत जी ..खूबसूरत ..गजल का हर अशआर काविले तारीफ़ है बिभिन्न विषय समेटे
आभार
भ्रमर ५

Comment by ram shiromani pathak on September 18, 2013 at 7:08pm

श्राप ही ऐसा मिला था सूर्य को,
देवता होकर सदा जलता चला,

धूल लेकर चल रहीं थी आंधियां,
आँख मैं मलता चला मलता चला,

बात मन की मन ही मन में रह गई,
दर्द भीतर रोग बन पलता चला,////ज़ोरदार भाई क्या कहने //बहुत बहुत बधाई आपको //जय हो 

Comment by vijayashree on September 18, 2013 at 6:50pm

गज़ल का हर अशआर भावपूर्ण है हार्दिक बधाई अरुण शर्मा जी 

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on September 18, 2013 at 6:41pm

वाह्ह्ह्ह वाह्ह्ह्ह्ह्ह वाह्ह्ह्ह्ह अनन्त जी सभी सेर कमाल,,,,है कमाल,,,,,भाई बहुत बहुत बधाई आपको,,,,, एक बात जो मुझे महसूस हुई ,,,कि अगर,,,,चला की जगह (रहा) रदीफ़ कर दिया जाये तो रौनक और सुन्दर लग रही है,,,,,,यह सुझाव मात्र है,,,,,अन्यथा न लेवें,,,, पुन: बधाई

Comment by shalini rastogi on September 18, 2013 at 6:12pm

बेहद खूबसूरत ग़ज़ल ... हर अश आर का भाव इतना सम्पूर्ण है की की प्रत्येक शेर खुद में एक ग़ज़ल लग रहा है 

श्राप ही ऐसा मिला था सूर्य को,
देवता होकर सदा जलता चला,.... अद्भुत !

जब प्रतीक्षा में पड़ा था मौत के,
वक़्त मुझको वो बड़ा खलता चला...... लाजवाब!

इतनी परिपक्व रचना के लिए बधाई अरुण जी!

Comment by अरुन 'अनन्त' on September 18, 2013 at 3:05pm

शुक्रिया आदरणीय सालिम शेख भाई

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"हार्दिक स्वागत मुहतरम जनाब दयाराम मेठानी साहिब। विषयांतर्गत बढ़िया उम्दा और भावपूर्ण प्रेरक रचना।…"
1 hour ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
" जय/पराजय कालेज के वार्षिकोत्सव के अवसर पर अनेक खेलकूद प्रतियोगिताओं एवं साहित्यिक…"
1 hour ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"हाइमन कमीशन (लघुकथा) : रात का समय था। हर रोज़ की तरह प्रतिज्ञा अपने कमरे की एक दीवार के…"
2 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आदाब। हार्दिक स्वागत आदरणीय विभारानी श्रीवास्तव जी। विषयांतर्गत बढ़िया समसामयिक रचना।"
3 hours ago
vibha rani shrivastava replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
""ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123विषय : जय/पराजय आषाढ़ का एक दिन “बुधौल लाने के…"
8 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आदाब। हार्दिक स्वागत आपकी रचना का। प्रदत्त विषयांतर्गत बेहद भावपूर्ण और विचारोत्तेजक कथानक व कथ्य…"
10 hours ago
रक्षिता सिंह replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"सादर प्रणाम, आदरणीय ।"
22 hours ago
रक्षिता सिंह replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"सुन, ससुराल में किसी से दब के रहने की कोई ज़रूरत नहीं है। अरे भाई, हमने कोई फ्री में सादी थोड़ी की…"
23 hours ago
Nilesh Shevgaonkar shared their blog post on Facebook
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"स्वागतम"
yesterday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय गजेंद्र जी, हृदय से आभारी हूं आपकी भावना के प्रति। बस एक छोटा सा प्रयास भर है शेर के कुछ…"
yesterday
Gajendra shrotriya replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"इस कठिन ज़मीन पर अच्छे अशआर निकाले सर आपने। मैं तो केवल चार शेर ही कह पाया हूँ अब तक। पर मश्क़ अच्छी…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service