For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मैंने बस राख में हवा की है -अभिनव अरुण ||ग़ज़ल||

ग़ज़ल –

२१२२  १२१२  २२

तुझसे मिलने की इल्तिज़ा की है ,

माफ़ करना अगर खता  की है |

 

राज़ पूछो न मुस्कुराने का ,

चोट खायी तो ये दवा की है |

 

अब मुझे हिचकियाँ नहीं आतीं ,

मेरे हक़ में ये क्या दुआ की है |

 

फूल तो सौ मिले हैं गुलशन में ,

खुशबुओं की तलाश बाकी है |

 

तुम इसे शाइरी समझते हो ,

मैंने बस राख में हवा की है |

 

एक पत्थर ख़ुशी से पागल था ,

आईनों ने ये इत्तिला की है |

 

था मुझे टूटना बिखरना तो  ,

क्यों मुझे ज़िन्दगी अता की है |

* सर्वथा मौलिक अप्रकाशित .

                      - अभिनव अरुण 

                        [19092013]

Views: 1027

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Abhinav Arun on September 21, 2013 at 7:12am

अहा  आपकी बधाई पा गद गद हूँ गद गद हूँ आ. धर्मेन्द्र श्री ..ये तय हुआ की आप नाराज़ नहीं है ....  :-) मैं तो टिप्पणी वापस लेने को वो ग़ज़ल ढूंढ रहा था पर वो मिली नहीं गजाला हो गयी :-)

Comment by vineet agarwal on September 20, 2013 at 10:25pm
Bahut bahut khoob bhayi
Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on September 20, 2013 at 9:38pm

बहुत खूब अभिनव जी, खूबसूरत ग़ज़ल है। दिली दाद कुबूल करें।

Comment by Abhinav Arun on September 20, 2013 at 6:41pm

आ. अरुण जी ग़ज़ल आपके अनुमोदन को पाकर हर्षित हुई ..बहुत शुक्रिया आदरणीय 

Comment by Abhinav Arun on September 20, 2013 at 6:40pm

आ. चन्द्र शेखर जी ह्रदय से धन्यवाद आदरणीय आपका !1

Comment by Abhinav Arun on September 20, 2013 at 6:40pm

बहुत शुक्रिया आदरणीय अखिलेश जी मुस्कुराने के बारे में आशुतोष जी के प्रति टिप्पणी में लिखा है आभार संकेत हेतु !

Comment by Abhinav Arun on September 20, 2013 at 6:39pm

आ. आशुतोष जहिब जो शेर आपने उद्धृत किया है उसमे बिखरना है ..मुस्कराने में u लगाने पर कुराने टाइप हो जा रहा है ...काफी प्रयास के बाद भी एक दो टंकण मिस्टेक रह ही जा रहे हैं ..बहर हाल ग़ज़ल की सराहना के लिए ह्रदय से आभार आपका !!

Comment by Dr Ashutosh Mishra on September 20, 2013 at 5:07pm

आदरणीय अभिनव जी

था मुझे टूटना बिखरा तो  ,

क्यों मुझे ज़िन्दगी अता की है ..इस उम्दा ग़ज़ल का ये शेर मुझे बेहद रास आया ..मेरी तरफ से हार्दिक बधाई स्वीकारें 

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on September 20, 2013 at 12:49pm

राज़ पूछो न मुस्कुराने का ,चोट खायी तो ये दवा की है | ' ( मुस्कराने )'

अरुण भाई यह शेर भारत के हर व्यक्ति पर सटीक बैठता है, आज के हालात में और भी ज्यादा ।  हार्दिक बधाई । 

Comment by CHANDRA SHEKHAR PANDEY on September 20, 2013 at 12:23pm

एक पत्थर ख़ुशी से पागल था ,

आईनों ने ये इत्तिला की है | सभी अशआर बेहद सुन्दर हैं। बधाई कुबुलें। मेरा पसंदीदा 

एक पत्थर ख़ुशी से पागल था ,

आईनों ने ये इत्तिला की है | आनंद आ गया आदरणीय।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
49 minutes ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
53 minutes ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
18 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
18 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
18 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
18 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
18 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
18 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
18 hours ago
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
20 hours ago
Shyam Narain Verma commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
21 hours ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दिनेश जी, बहुत धन्यवाद"
21 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service