हे विधि! क्यों आस पल में तूने तोड़ दी,
हे नियति!क्यों वेदना तूने मुझे कठोर दी?
एक ममता की आस,कुछ स्वप्नों के छोर,
नवजीवन का संचार,एक श्वांसों की डोर।
हाय ! पल में तूने क्यों तोड़ दी?
हे नियति! क्यों वेदना तूने मुझे कठोर दी?
एक 'माँ' का संबोधन,सुनने को व्याकुल मन,
एक नन्हा-सा जीवन,एक नवल शिशु-तन।
आह ! तूने नन्हीं देह मरोड़ दी।
हे नियति!क्यों वेदना तूने मुझे कठोर दी?
गर्भ धारण की समस्त पीड़ा,जो मैंने सही,
हृदय की वो वेदना,जो अंतरतम में रही।
आह!प्रकृति ने मेरी साधना तोड़ दी।
हे नियति!क्यों वेदना तूने मुझे कठोर दी?
पल-पल पलता,मेरी देह में एक जीवन,
सृजन के रोमांच से,खिलता मेरा तन-मन।
उसके प्राण ले तूने मेरी जान क्यों छोड़ दी?
हे नियति!क्यों वेदना तूने मुझे कठोर दी?
उसके जाने पर,छाती दूध की नदियाँ बहाती,
शिशु बिना स्तन-पान भला,मैं किसे कराती?
उसके संग मेरी साँस क्यों न तोड़ दी ?
हे नियति!क्यों वेदना तूने मुझे कठोर दी?
उसकी मृत्यु पर रोते-रोते,मेरी आँखें न फूटीं,
उसे पुकारते-पुकारते मेरी,ये साँसें न छूटीं।
उसके साथ क्यों न मेरी जीवनरेखा सिकोड़ दी।
हे नियति!क्यों वेदना तूने मुझे कठोर दी?
उसके माथे को चूमकर,उसे अंक में भरना था,
उसे गले लगाकर,जी भर प्यार मुझे करना था।
उसके बिना जीने को क्यों मेरी जीवनधारा मोड़ दी।
हे नियति! क्यों वेदना तूने मुझे कठोर दी?
'सावित्री राठौर'
[मौलिक एवं अप्रकाशित]
Comment
प्रिय प्राची जी,मेरी इस रचना के मर्म तक पहुँचने,उसे व्याख्यायित करने एवं मेरा मार्गदर्शन करने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद ! एक माँ की पीड़ा को मैं लिपिबद्ध कर सकी,यह मेरी योग्यता नहीं अपितु माँ सरस्वती का शुभाशीष है और आप सभी सुधीजनों के प्रेरक शब्दों का प्रभाव।
प्रिय सावित्री जी
गर्भस्थ शिशु के लिए जब माँ की कोख ही उसकी कब्रगाह बन जाए... कारण चाहे जो भी हो , यह वेदना माँ के लिए असह्य ही होती है.
माँ का सम्बन्ध तो शिशु से गर्भाधान के साथ ही जुड़ जाता है, और माँ उसे पल पल हर श्वांस के साथ अपने ही भीतर जीने लगती है.
इस दुःख पीड़ा, स्वप्नों की टूटन, को मार्मिकता से प्रस्तुत किया गया है.
आपकी अभिव्यक्तियों में शिल्प पर भी आप और ध्यान दें.. गीत विधा को आत्मसात करें व मात्रिकता निर्वहन पर ध्यान दें.
शुभकामनाएं
बसंत जी, रविकर जी, शालिनी जी,अरुण जी, रमेश जी,महिमा जी और डॉ आशुतोष जी,आप सभी के अमूल्य शब्दों हेतु मैं आभारी हूँ।एक माँ की पीड़ा व्यक्त करने में मेरी लेखनी सक्षम रही,मेरे लिए यही संतुष्टिजनक बात है।
दिल को झकझोर देने वाले शसक्त रचना के लिए हार्दिक बधाई ..सादर
बेहद मार्मिक प्रस्तुती आदरणीया एक व्याकुल माँ की ममता की तड़प उद्वेलित कर गयी .....
वेदना भरी रचना मुझे झकझोर दी,
अपने जीवन की घटना यह,
एक बार फिर आंखे नम कर दी
याद आ गया फिर मुझे,
मेरे गोद का खालीपन,
जो ईश्वर ने वेदना कठोर दी ।
एक 'माँ' का संबोधन,सुनने को व्याकुल मन,
एक नन्हा-सा जीवन,एक नवल शिशु-तन।
आह ! तूने नन्हीं देह मरोड़ दी। .... उफ्फ उफ्फ आदरणीया महिमा जी झकझोर गई आपकी यह रचना इन पंक्तियों पर काफी देर तक ठहरा रह गया अथाह दर्द, शब्दकोष खाली पड़ा है शब्द नहीं मिल रहे आपकी इस रचना पर कहूँ भी तो क्या और किस तरह कहूँ.
इअश न करे की ऐसी वेदना किसी स्त्री को भोगनी पड़े .. मर्म को व्याकुल कर गई आपकी यह हृदास्पर्शी पंक्तियाँ !
मार्मिक-
व्यथित करती पंक्तियाँ-
शुभकामनायें आदरेया-
आदरणीया सबित्रि जी .ये दर्द तो केबल एक माँ के दिल से निकल सकता है .. आप के दिल से निकला ये दर्द सीधे स्रोता के दिल मे उतर गया ... बहुत सुन्दर भाव के साथ सुन्दर मर्म् स्पर्शी रचना ...ढेरो शुभकामनाये अनंत बधाई .....
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