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एक दिन
तुमने कहा था
मैं सुंदर हूँ
मेरे गेसू काली घटाओं की तरह हैं
मेरे दो नैन जैसे मद के प्याले
चौंक कर शर्मायी
कुछ पल को घबरायी
फिर मुग्ध हो गयी
अपने आप पर
पर जल्द ही उबर गयी
तुम्हारे वागविलास से
फंसना नहीं है मुझे
तुम्हारे जाल में
सदियों से
सजती ,संवरती रही
तुम्हारे मीठे बोल पर
डूबती उतराती रही
पायल की छन छन में
झुमके , कंगन , नथुनी
बिंदी के चमचम में
भुल गयी
प्रकृति के विराट सौन्दर्य को
वंचित हो गयी
मानव जीवन के
उच्चतम सोपानो से
और
तुमने छक के पीया
जम के जीया
जीवन के आयामों को
पर इस बार नहीं
भरमाओ मत
देवता बनने का स्वाँग
बंद करो
साथ चलना है , चलो
देहरी सिर्फ मेरे लिए
हरगिज नहीं

मौलिक व् अप्रकाशित

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Comment

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 26, 2013 at 11:30am

प्रिय महिमा जी 

आपकी बेहतरीन रचनाओं में से एक रचना है ये... 

इस साफगोई , बुलंद आत्मसमान से भरे सत्य कथ्य के लिए और सुन्दर प्रवाहमय प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत शुभकामनाएं 

Comment by vandana on September 24, 2013 at 7:01am

हृदयस्पर्शी रचना.... बहुत खूब आदरणीय महिमा जी 

Comment by Abhinav Arun on September 24, 2013 at 6:10am

आ. महिमा श्री आप सत्यम शिवम सुन्दरम ही नहीं बल्कि संदेशपरक भी ..दिशा सूचक भी ...सचेत करता भी लिखती हैं .. सिर्फ भावो में बहना कविता नहीं यह मैसेज आपकी रचनाओ में देखा है . बहुत संभावनाएं हैं आपमें उनका सकारात्मक अन्वेषण करें ..सदा सहयोग .सदा स्नेह सदा आशीर्वाद !!

Comment by वेदिका on September 24, 2013 at 12:44am

आदरणीय राजेश जी!

वैसे तो महिमा जी ने विस्तार दे ही दिया है, आत्मसात करना आसान कर दिया, और कविता 3-4 बार मनन की जाए तो स्वयं ही अर्थ प्रकट कर देती है| देवता के वाग्विलास अर्थात वे विवाह के पूर्व के अनुबंध जो विवाह होते होते उसी अग्नि मे स्वाहा हो जाते हैं| और दुल्हिन देहरी बंद...  

Comment by वीनस केसरी on September 24, 2013 at 12:08am

आदरणीया मैं अतुकांत लिखता भी हूँ
कभी समय मिले तो मेरी ब्लॉग लिस्ट पर नज़रे इनायत कीजियेगा ... :))))))))))

Comment by MAHIMA SHREE on September 23, 2013 at 11:55pm

//देहरी सिर्फ मेरे लिए ......... कह दिया गया सच बाखूबी!!//

 

प्रिय वेदिका जी देर से आई तो सही ... और देर से ही सही ................................  देहरी सिर्फ मेरे लिए   कह दिया गया :))

 

सस्नेह

 

Comment by MAHIMA SHREE on September 23, 2013 at 11:49pm

आदरणीय वीनस जी .. क्या बात है :)) आप अतुकांत भी पढ़ते  है जनाब ..  आज पता चला ::))

बरहाल रचना पर आपका अनुमोदन पाकर प्रसन्नता हुयी .. आभारी हूँ ./

 

Comment by MAHIMA SHREE on September 23, 2013 at 11:43pm

आदरणीया मीना पाठक जी नमस्कार .. स्वागत है .. आपने पढ़ा , पसंद किया आभारी हूँ ..

मुझे आश्चर्य है की नारियों का इस रचना पर अनुमोदन बहुत कम है ...  अगर किसी   आधुनिक नारी को  सभी अधिकार सहजता से मिल गए हैं ..इसका ये मतलब नहीं की पुरे समाज में नारी की दशा में सुधार आ गया है ... अतः उनका  क्या ये  फर्ज नहीं बनता की वे उनकी दशा का संज्ञान ले ...

खैर मेरे मन में ये बात आई तो आपसे साझा कर ली ..

 

आपने समय दिया सादर धन्यवाद

 

 

Comment by MAHIMA SHREE on September 23, 2013 at 11:34pm

आदरणीय अभिनव जी .. आप जैसे संवेदनशील  रचनाकर्मी से रचना पर अनुमोदन पाकर अच्छा लगा .. सही कहा आपने बहेलिये हर जगह मिलते है स्त्री को जन्म के साथ ही   इनसे  बचने के लिए सतर्क रहना पड़ता है ..जनसख्याँ बढ़ने के साथ घटनाए भी बढती जा रही हैं ... बहुत सारी बातें है जो कभी खत्म ना हो ..इसलिए यही विराम देती हूँ ..

 

स्नेह बनाये रखे .. और इसी तरह  प्रोत्साहित करते रहे यही ईश्वर से कामना  है .. सादर

Comment by वेदिका on September 23, 2013 at 11:24pm

देहरी सिर्फ मेरे लिए ......... कह दिया गया सच बाखूबी!!

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