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एक दिन
तुमने कहा था
मैं सुंदर हूँ
मेरे गेसू काली घटाओं की तरह हैं
मेरे दो नैन जैसे मद के प्याले
चौंक कर शर्मायी
कुछ पल को घबरायी
फिर मुग्ध हो गयी
अपने आप पर
पर जल्द ही उबर गयी
तुम्हारे वागविलास से
फंसना नहीं है मुझे
तुम्हारे जाल में
सदियों से
सजती ,संवरती रही
तुम्हारे मीठे बोल पर
डूबती उतराती रही
पायल की छन छन में
झुमके , कंगन , नथुनी
बिंदी के चमचम में
भुल गयी
प्रकृति के विराट सौन्दर्य को
वंचित हो गयी
मानव जीवन के
उच्चतम सोपानो से
और
तुमने छक के पीया
जम के जीया
जीवन के आयामों को
पर इस बार नहीं
भरमाओ मत
देवता बनने का स्वाँग
बंद करो
साथ चलना है , चलो
देहरी सिर्फ मेरे लिए
हरगिज नहीं

मौलिक व् अप्रकाशित

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Comment

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Comment by MAHIMA SHREE on September 23, 2013 at 10:13pm

आदरणीय आशुतोष जी .. स्वागत है ... हार्दिक धन्यवाद आदरणीय .. रचना के मर्म को समझा , पसंद किया ह्रदय तल से आभार  .. सहयोग बनाये रखे सादर

Comment by Meena Pathak on September 23, 2013 at 7:59pm

देवता बनने का स्वाँग
बंद करो
साथ चलना है , चलो
देहरी सिर्फ मेरे लिए
हरगिज नहीं...................... बहुत  सुन्दर रचना ... बधाई आप को 

Comment by Abhinav Arun on September 23, 2013 at 7:18pm

साथ चलना है , चलो
देहरी सिर्फ मेरे लिए
हरगिज नहीं

              .... समय की अपेक्षाओं पर खरी ..खरी खरी कहने वाली इस रचना के लिए हार्दिक शुभाशीष महिमा जी ..आज वक़्त की मांग है ये साफगोई ज़रूरी है वरना बहेलिये जाल बिछाए ..दाने डाल ...ऑफिस ऑफिस ..पार्क पार्क ..तत्र सर्वत्र ...बैठे हैं ..आपने जाना बूझा परखा और लिखा स्तुत्य है रचना ...बहुत शुभकामनायें !!

Comment by Savitri Rathore on September 23, 2013 at 6:44pm

देवता बनने का स्वाँग
बंद करो
साथ चलना है , चलो
देहरी सिर्फ मेरे लिए
हरगिज नहीं
नयी सोच को दर्शाती रचना,सराहनीय प्रयास !

Comment by vijay nikore on September 23, 2013 at 6:27pm

बहुत सुन्दर रचना है। बधाई।

 

सादर,

विजय निकोर

Comment by डॉ. अनुराग सैनी on September 23, 2013 at 5:42pm

एक नयी सोच और नयी दिशा की और बढ़ते ये कदम ! शुभकामनाये आपको

Comment by रविकर on September 23, 2013 at 5:32pm

गजब-
ठीक पहचाना-
सही प्रतिक्रिया-
शुभकामनायें आदरेया-

Comment by अरुन 'अनन्त' on September 23, 2013 at 5:24pm

आदरणीया महिमा श्री जी वाह क्या कहने बहुत ही सुन्दर रचना दिल को छू गई बहुत बहुत बधाई स्वीकारें.

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 23, 2013 at 4:00pm

रचना में सुन्दर भाव दर्शाने के लिए हार्दिक बधाई महिमाश्री जी -

साथ चलना है , चलो
देहरी सिर्फ मेरे लिए
हरगिज नहीं | अर्थात 

मेरी प्रगति के दरवाजे

अब तुम

न बंद करों  |

Comment by राजेश 'मृदु' on September 23, 2013 at 12:39pm

जय हो, अच्‍छी प्रस्‍तुति  । मगर प्रशंसा की बात को देवता से जोड़ नहीं पाया । वागविलास भी देवता नहीं करते, खैर, चलते रहें ।

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