छंद त्रिभंगी : चार पद, दो दो पदों में सम्तुकांतता, प्रति पद १०,८,८,६ पर यति, प्रत्येक पद के प्रथम दो चरणों में तुक मिलान, जगण निषिद्ध
रज कण-कण नर्तन, पग आलिंगन, धरती तृण-तृण, अर्श छुए
कर तन मन चंचल, फर-फर आँचल, मुक्त उऋण सी, पवन बहे
सुन क्षण-क्षण सरगम, अन्तर पुर नम, विलयन संगम, भाव बिंधे
सुन्दरतम नियमन, श्रुति अवलोकन, लय आलंबन, सृजन सुधे
मौलिक और अप्रकाशित
Comment
सुन्दरतम नियमन, लय आलंबन, श्रुति अवलोकन, सृजन सुधे ..
सुन्दर सृजन अच्छा छंद ..प्रकृति नटी निराली है ही ..आप के शब्द मन को छू जाते हैं आज हमारे हिंदी साहित्य को ऐसे लोगों की बहुत ही जरुरत है ....बधाई
आदरणीया प्राची जी जय श्री राधे
भ्रमर ५
वाह बहुत उत्तम ...
सुन्दरतम नियमन, लय आलंबन, श्रुति अवलोकन, सृजन सुधे .. बहुत सुन्दर.
नित चकित चमत्कृत करती रचनाओ से साहित्य को संमृद्धि प्रदान कर रही आ. प्राची जी को हार्दिक बधाई और शुभकामनायें ! रचना में प्रकृति के गुणों का विशिष्टता का अनुपम वर्णन हुआ है ..साधुवाद नमन लेखनी को ..वंदन लेखिका का !!
आ. प्राचीजी - इसे तो मैं अद् भुत ही कह सकता हूँ हार्दिक बधाई के साथ । कभी इसका अर्थ / भावार्थ जरूर प्रकाशित् कीजिए ।
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