शोहरतें पाने मचलता नादाँ दिल क्यूँ सोचिये
हसरतों पे जीता मरता नादाँ दिल क्यूँ सोचिये
यूँ किसी की याद में जलने का मौसम गम भरा
फिर उसी को याद करता नादाँ दिल क्यूँ सोचिये
चोट खाता है मुसलसल जिन्दगी की राह में
तब सनम जैसे सँवरता नादाँ दिल क्यूँ सोचिये
आईने से रू-ब-रू होने की हिम्मत है नहीं
हार के फिर आह भरता नादाँ दिल क्यूँ सोचिये
इल्म है उसको गली ये जा रही है किस तरफ
जान कर उससे गुजरता नादाँ दिल क्यूँ सोचिये
वो हकीकत जानता है कुछ न लाया साथ में
फिर भी देखो हाथ मलता नादाँ दिल क्यूँ सोचिये
दर्द से नज़रें चुराने “दीप” वो सारे बुझा
खुद ही सारी रात जलता नादाँ दिल क्यूँ सोचिये
संदीप कुमार पटेल “दीप”
मौलिक एवं अप्रकाशित
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यूँ किसी की याद में जलने का मौसम गम भरा
फिर उसी को याद करता नादाँ दिल क्यूँ सोचिये
चोट खाता है मुसलसल जिन्दगी की राह में
तब सनम जैसे सँवरता नादाँ दिल क्यूँ सोचिये//
बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल आदरणीय भाई संदीप जी // हार्दिक बधाई आपको
बेहद सुंदर गजल, दिली दाद कुबूल कीजिये आदरणीय संदीप जी
बहुत सुन्दर ग़ज़ल
हार्दिक बधाई आ० संदीप पटेल जी
खूबसूरत गज़ल के लिए बधाई, आदरणीय संदीप जी।
सादर,
विजय निकोर
क्या कहने मित्रवर बेहद सुन्दर ग़ज़ल खूबसूरत अशआर दिली दाद कुबूल फरमाएं.
:
इल्म है उसको गली ये जा रही है किस तरफ
जान कर उससे गुजरता नादाँ दिल क्यूँ सोचिये....साहब ..उम्दा ग़ज़ल के लिए हार्दिक शुभकामना ..! बढ़िया शेर :)
बहुत खूब ... सुन्दर गजल कही है .. बधाई
फैलता है ये समंदर सा कभी , फिर सिमटता है क्यों बूंद सा , सोचिये
बहुत सारे सवाल छोडती है ये गज़ल बहुत बहुत बधाई !
बहुत बढ़िया गज़ल कही भाई सन्दीप जी !! बहुत बधाई !!
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