ये क्या हो रहा है
ये क्यों हो रहा है
नकली चीज़ें बिक रही हैं
नकली लोग पूजे जा रहे हैं...
नकली सवाल खड़े हो रहे हैं
नकली जवाब तलाशे जा रहे हैं
नकली समस्याएं जगह पा रही हैं
नकली आन्दोलन हो रहे हैं
अरे कोई तो आओ...
आओ आगे बढ़कर
मेरे यार को समझाओ
उसे आवाज़ देकर बुलाओ...
वो मायूस है
इस क्रूर समय में
वो गमज़दा है निर्मम संसार में...
कोई नही आता भाई..
तो मेरी आवाज़ ही सुन लो
लौट आओ
यहाँ दुःख बाटने की परंपरा है..
यहाँ सांझा चूल्हे की सेंक है....
तुम एक बार अपने फैसले पर दुबारा विचार करो...
मेरे लिए...
हम सबके लिए.....
(मौलिक अप्रकाशित)
Comment
आज के तथाकथित विकास और बदलाव से मिथ्याचरण और ढकोसला को जिसी इज़्ज़त मिली है कि सार्थक लेकिन भावुक परंपरायें हाशिये पर जाती स्पष्ट दिख रही हैं. कवि-हृदय की सच्चाई इसे देख भी पाती है और छटपटाती भी है. आँगन तक एकसार नहीं रह गये हैं. किसी उम्मीद की तरह प्रस्तुत हुई यह कविता यह घोषणा करने में सक्म अवश्य हुई है कि काग़ज़ी माहौल के तारी होने के बावज़ूद सबकुछ काग़ज़ी नहीं हुआ है.
हृदय से बधाइयाँ आदरणीय
सुंदर रचना //बहुत बहुत बधाई
सुंदर सशक्त रचना, बधाई स्वीकारें आदरणीय अनवर साहब
नकली जब नकलेल हो, नक्शा बदले बैल |
नकली हो प्रश्नोत्तरी, नकली नेता रैल |
नकली नेता रैल, बात पूरी कह डाली |
उनके मन का मैल, बनाये उन्हें बवाली |
साधुवाद श्रीमान, विषय लाते हो असली |
भाव कथ्य उत्कृष्ट, जगत मिथ्या अब नकली |||
सुंदर रचना , बधाई आपको ।
सुन्दर सशक्त अनवर साहिब !!
बहुत खूब आदरणीय
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