For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हमारे ज़माने में माएं

मैं कैसे बताऊँ बिटिया
हमारे ज़माने में माँ कैसी होती थी

तब अब्बू किसी तानाशाह के ओहदे पर बैठते थे
तब अब्बू के नाम से कांपते थे बच्चे
और माएं बारहा अब्बू की मार-डांट से हमें बचाती थीं
हमारी छोटी-मोटी गलतियां अब्बू से छिपा लेती थीं
हमारे बचपन की सबसे सुरक्षित दोस्त हुआ करती थीं माँ

हमारी राजदार हुआ करती थीं वो
इधर-उधर से बचाकर रखती थीं पैसे
और गुपचुप देती थी पैसे सिनेमा, सर्कस के लिए

अब्बू से हम सीधे कोई फरमाइश नही कर सकते थे
माँ हुआ करती थीं मध्यस्थ हमारी
जो हमारी ज़रूरतों के लिए दरख्वास्त लगाती थीं

अपनी थाली में बची सब्जियां और रोटी लेकर
जब वो खाने बैठती तो हम भरपेटे बच्चे
एक निवाले की आस लिए टपक पड़ते
इसी एक निवाले ने हमें सिखाया
हर सब्जी के स्वाद का मज़ा...

तुम लोगों की तरह हम कभी कह नही सकते थे
कि हमे भिन्डी नही पसंद है
कि बैगन कोई खाने की चीज़ है

हमारे ज़माने की माएं
सबके सोने के बाद सोती थीं
सबके उठने से पहले उठ जाती थीं
और सबकी पसंद-नापसंद का रखती थीं ख्याल
कि तब परिवार बहुत बड़े हुआ करते थे
कि तब माएं किसी मशीन की तरह काम में जुटी रहती थीं
कि तब माएं सिर्फ बच्चों की माएं हुआ करती थीं..........

मैं कैसे समझाऊं बिटिया
हमारे ज़माने में माएं कैसी होती थीं....

(मौलिक अप्रकाशित)

Views: 488

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 3, 2013 at 2:49am

अंत तक आते-आते पंक्तियाँ भावप्रधान हो गयी हैं. लेकिन खेद है सर, कविता नहीं हो पायी है ये प्रस्तुति.

Comment by anwar suhail on October 2, 2013 at 8:56pm

इस कविता के माध्यम से मेरा मकसद सिर्फ इतना है कि तब की माएं बच्चो को परीक्षा में उच्चतम अंक पाने की मशीन नही समझती थीं...वे चाहती थीं कि बच्चे खूब खुश रहें..स्वस्थ रहें और मस्त रहें...

और आजकल के इस प्रतिस्पर्धा युग में माएं बच्चों के ९८ मार्क्स पाने से खुश नही होतीं, बल्कि बच्चे से पूछती हैं कि दो नंबर कम क्यों आये....

Comment by विजय मिश्र on October 1, 2013 at 12:39pm
"हू ब हू ऐसी ही हुआ करती थी माँ " -सुहैल भाई ,दिल खोलकर रख दिया है आपने अपने जमाने की माँ को | कहीं भी कुछ भी छोड़ा नहीं है माँ की तस्वीर बनाने में , नाक-नक्स सब काएदे से रखा | कितनी मशगुल रहतीं थी हममे जैसे हमसे फारीग और फाजिल उनकी और कोई दुनियाँ ही न हो . माँ मुकम्मल माँ होतीं थीं और कुछ भी नहीं. ढ़ेरों शुक्रियादा अदा करता हूँ इस प्यारी सी अम्मी और खुर्राट अब्बा को जेहन में कुरेदने के लिए .
Comment by Meena Pathak on September 30, 2013 at 6:24pm

aब भी वैसी ही हैं माँयें मशीन की तरह ... सुन्दर रचना हेतु बधाई 

Comment by डॉ. अनुराग सैनी on September 30, 2013 at 3:52pm

बीत गए वो पल पुराने , कैसे सुनाऊं अब वो तराने ? शुभकामनाये आपको !

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

शोक-संदेश (कविता)

अथाह दुःख और गहरी वेदना के साथ आप सबको यह सूचित करना पड़ रहा है कि आज हमारे बीच वह नहीं रहे जिन्हें…See More
10 hours ago
धर्मेन्द्र कुमार सिंह commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"बेहद मुश्किल काफ़िये को कितनी खूबसूरती से निभा गए आदरणीय, बधाई स्वीकारें सब की माँ को जो मैंने माँ…"
11 hours ago
धर्मेन्द्र कुमार सिंह commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post जो कहता है मज़ा है मुफ़्लिसी में (ग़ज़ल)
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी"
11 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक आभार "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। उत्तम गजल हुई है। हार्दिक बधाई। कोई लौटा ले उसे समझा-बुझा…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी

२१२२       २१२२        २१२२   औपचारिकता न खा जाये सरलता********************************ये अँधेरा,…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post छन्न पकैया (सार छंद)
"आयोजनों में सम्मिलित न होना और फिर आयोजन की शर्तों के अनुरूप रचनाकर्म कर इसी पटल पर प्रस्तुत किया…"
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन पर आपकी विस्तृत समीक्षा का तहे दिल से शुक्रिया । आपके हर बिन्दु से मैं…"
Tuesday
Admin posted discussions
Monday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपके नजर परक दोहे पठनीय हैं. आपने दृष्टि (नजर) को आधार बना कर अच्छे दोहे…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"प्रस्तुति के अनुमोदन और उत्साहवर्द्धन के लिए आपका आभार, आदरणीय गिरिराज भाईजी. "
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service