मुतदारिक मुसद्दस सालिम
212 /212/ 212
जिन्दगी जिन्दगी जिन्दगी ।
बन्दगी तिश्नगी आशिकी ॥
जिन्दगी जिन्दगी जिन्दगी ।
खेल भी जीत भी हार भी ॥
जिन्दगी जिन्दगी जिन्दगी ।
इश्क भी अश्क भी मौत भी ॥
जिन्दगी जिन्दगी जिन्दगी ।
देश भी धर्म भी कर्म भी ।।
जिन्दगी जिन्दगी जिन्दगी ।
शब्द भी नज़्म भी नग़्म भी ।।
जिन्दगी जिन्दगी जिन्दगी ।
तख्त भी अर्श भी गर्द भी ॥
जिन्दगी जिन्दगी जिन्दगी ।
फर्ज भी कर्ज भी दर्द भी ॥
जिन्दगी जिन्दगी जिन्दगी।
मीत भी खैर भी बैर भी ॥
जिन्दगी जिन्दगी जिन्दगी ।
भूख भी प्यास भी नीँद भी ॥
जिन्दगी जिन्दगी जिन्दगी ।
शूल सी फूल सी नूर सी ॥
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
जिंदगी का फलसफा बयानी सुंदर है । इसके लिये आपको ढेरो बधाई ......................................
मै क्षमा चाहते हुये कहना चाहता मुझे रदिफ काफिया समझ में नही आ रहा है ।
एक अलग ही प्रयोग है, जानकारों की राय चाहूँगा कि क्या शिल्पनुसार यह मान्य है । इस प्रस्तुति हेतु बधाई ।
आदरणीय बसंत भाई , बहुत सुन्दर गज़ल कही है आपने , आपको हार्दिक बधाई !!
बहुत ही सुन्दर रचना बनी है ! हार्दिक बधाई
आदरणीय बसंत जी बहुत अच्छा प्रयास है आपका! आपको हार्दिक बधाई! सतत प्रयासरत रहे. चीज़ें अपने आप सही होने लगेंगी!
आदरणीय बसंत भाई प्रथम प्रयास बहुत ही अच्छा हुआ है जिंदगी की किताब के कई पन्ने खोल दिए आपने कई रंग भर गए इस प्रस्तुति में, ग़ज़ल विधा पर आपको प्रयास करते देख बड़ी प्रसन्नता हो रही है सतत प्रयासरत रहें भाई जी. इस प्रयास पर ढेरों बधाई स्वीकारें.
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