!!! काम अनंग समान हुए !!!
दुर्मिल सवैया ... आठ सगण यथा-
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कलिकाल अकाल समाज ग्रसे, मन आकुल दीप पतंग हुए।
नित मानव दंश करे जग को, रति-काम समान दबंग हुए।।
घर बाहर ताक रहे वन में, जिय चोर उफान करे तन में।
अति हीन मलीन विचार धरे, निज मीत सुप्रीति छले छन में।।1
जग घोर अनर्थ अकारण ही, नित रारि-प्रलाप सहालग है।
कब? कौन? कथा सुविचार करे, अपलच्छन कर्म कुमारग है।।
जब धर्म सुनीति डिगे जग में, अवतार तभी जग तारक हो।
अब मोह नहीं बस छोह सही, जब पूत कपूत विदारक हो।।2
जब आशु नही फिर तोष कहां, धवलेश्वर चन्द्र त्रिशूल लिए।
गल नाग सजे नर मुण्ड भले, मदिराचल का विष पान किए।।
फल फूल लता सहमे-सहमे, वन चन्दन-केसर शेष रहे।
कब क्रोध करें शिव शंकर जी, झट राख करें पल देख रहे।।3
धनुवा पर तीर धरे अति तीव्र, चले अस पुष्प समान लगे।
सर भेद गया हिय शंकर के, अति तेज बयार गुमान ठगे।।
शिव त्रास दिए तब काम जले, रति चीख-विलाप सहाय हुए।
जब शीश झुके शिव के पद में, तब काम अनंग समान हुए।।4
के0पी0सत्यम/मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय अनुराग भार्इ जी, आपके अपार स्नेह और छन्द अनुमोदन हेतु...आपका हार्दिक आभार। सादर,
आदरणीया वेदिका जी, आपका अल्प ज्ञान नही है, मन आकुल दीप पतंग हुए'' गजल की तरह छन्द में भी मात्राएं आवश्यकताओ के अनुरूप प्रयोग में लायी जा सकती हैं। किन्त इससे बचे रहना समझदारी है। ...आपका हार्दिक आभार। सादर,
आदरणीय भण्डारी भार्इ जी, आपके अपार स्नेह और छन्द अनुमोदन हेतु...आपका हार्दिक आभार। सादर,
आदरणीय आशुतोष भार्इ जी, आपके अपार स्नेह और छन्द अनुमोदन हेतु...आपका हार्दिक आभार। सादर,
बहुत ही सुन्दर प्रयास! आपको हार्दिक बधाई!
आदरणीय अरून अनन्त भार्इ जी, आपके स्नेह और परामर्श हेतु...आपका हार्दिक आभार। सादर,
आदरणीया कुन्ती जी, आपके स्नेह और अनुमोदन हेतु...आपका हार्दिक आभार। सादर,
आदरणीय रविकर जी, आपने बिलकुल सही कहा..मन आकुल दीप पतंग हुए...आपका हार्दिक आभार। सादर,
शब्द चयन अनूठा है , भाव ख़ास है बधाई स्वीकार करें !
//पतंग* हुए // मे मात्रा का निर्वहन हुआ नहीं लग रहा, या मेरा अल्पज्ञान,, मार्गदर्शन चाहूंगी !!
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