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गीत (जब से अपने जुदा हो गए)

गीत (जब से अपने जुदा हो गए)

.

जब से अपने जुदा हो गए, ख्वाहिशें सब फ़ना हो गईं,

मौत भी जैसे नाराज़ है, ज़िंदगी बेवफा हो गई।

 

दर्द के कुछ थपेड़ों ने आकर के फिर,

तोड़ डाला मेरे एक अरमान को,

ज़ख्म जितने मिले, सारे दिल पे लगे,

चोट पहुँची मेरे मान सम्मान को,

गल्तियाँ उनको सब माफ़ थीं, हमने की तो ख़ता हो गई,

मौत भी जैसे नाराज़ है, ज़िंदगी बेवफा हो गई,

जब से अपने जुदा हो गए....

 

छोड़कर हमको यूँ बीच मँझधार में,

उनके दिल को सुकूँ कैसे आया भला,

हम तो यादों की नैया में रोते रहे,

सोचते थे ये किस्मत ने कैसा छला,

दिन से धूलों का पर्दा हटा, रात भी आइना हो गई,

मौत भी जैसे नाराज़ है, ज़िंदगी बेवफा हो गई,

जब से अपने जुदा हो गए....

 

रिश्ते नातों से बढ़कर ना कोई बड़ा,

जानकर भी क्यों अनजान बनते हैं वो,

मोह माया के चक्कर में जो भी फँसा,

चाह कर भी न इन्सान बनते हैं वो,

अपने साये से भी तब बड़ी, रुपयों की लालसा हो गई,

मौत भी जैसे नाराज़ है, ज़िंदगी बेवफा हो गई,

जब से अपने जुदा हो गए....

.

----- सुशील जोशी

"मौलिक व अप्रकाशित"

Views: 807

Comment

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Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on October 10, 2013 at 8:47pm
भाई सुशील जी! सुन्दर गीत है। बधाई।
सच है जब व्यक्ति दुखी होता है, तब वह सिर्फ का वरण करना चाहता है लेकिन वह भी आसानी से आती।
Comment by Sushil.Joshi on October 10, 2013 at 8:46pm

आपकी टिप्पणी मेरा उत्साह बढ़ाने में सक्षम है आदरणीय गिरिराज भंडारी जी.... सादर धन्यवाद....

Comment by Sushil.Joshi on October 10, 2013 at 8:45pm

आप गीत के मर्म तक पहुँची एवं अपनी प्रतिक्रिया दी, इसके लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीया राजेश कुमारी जी....

Comment by Kapish Chandra Shrivastava on October 10, 2013 at 4:57pm


आदरणीय सुशील जी बहुत बढ़िया छंद लिखा है । सही कहा है आपने --जब से अपने जुदा हो गए , ख्वाहिशें सब फना हो गयी ।  गम और ख़ुशी में अपनों का साथ होना  बहुत ज़रूरी है । क्योंकि  अपनों के  बिना  ख्वाहिशें बेमानी हो जाती हैं । आपको बहुत-बहुत बधाई ।  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 10, 2013 at 4:40pm

आदरणीय सुशील भाई , बहुत सुन्दर भाव पूर्ण गीत के लिये हार्दिक बधाई !!!!!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 10, 2013 at 10:59am

दर्द के कुछ थपेड़ों ने आकर के फिर,

तोड़ डाला मेरे एक अरमान को,

ज़ख्म जितने मिले, सारे दिल पे लगे,

चोट पहुँची मेरे मान सम्मान को,

गल्तियाँ उनको सब माफ़ थीं, हमने की तो ख़ता हो गई,

मौत भी जैसे नाराज़ है, ज़िंदगी बेवफा हो गई, वाह्ह्ह्ह बहुत सुन्दर हृदय स्पर्शी गीत ,बहुत बढ़िया लिखा है ,हार्दिक बधाई आपको 

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