गीत (जब से अपने जुदा हो गए)
.
जब से अपने जुदा हो गए, ख्वाहिशें सब फ़ना हो गईं,
मौत भी जैसे नाराज़ है, ज़िंदगी बेवफा हो गई।
दर्द के कुछ थपेड़ों ने आकर के फिर,
तोड़ डाला मेरे एक अरमान को,
ज़ख्म जितने मिले, सारे दिल पे लगे,
चोट पहुँची मेरे मान सम्मान को,
गल्तियाँ उनको सब माफ़ थीं, हमने की तो ख़ता हो गई,
मौत भी जैसे नाराज़ है, ज़िंदगी बेवफा हो गई,
जब से अपने जुदा हो गए....
छोड़कर हमको यूँ बीच मँझधार में,
उनके दिल को सुकूँ कैसे आया भला,
हम तो यादों की नैया में रोते रहे,
सोचते थे ये किस्मत ने कैसा छला,
दिन से धूलों का पर्दा हटा, रात भी आइना हो गई,
मौत भी जैसे नाराज़ है, ज़िंदगी बेवफा हो गई,
जब से अपने जुदा हो गए....
रिश्ते नातों से बढ़कर ना कोई बड़ा,
जानकर भी क्यों अनजान बनते हैं वो,
मोह माया के चक्कर में जो भी फँसा,
चाह कर भी न इन्सान बनते हैं वो,
अपने साये से भी तब बड़ी, रुपयों की लालसा हो गई,
मौत भी जैसे नाराज़ है, ज़िंदगी बेवफा हो गई,
जब से अपने जुदा हो गए....
.
----- सुशील जोशी
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
आपकी टिप्पणी मेरा उत्साह बढ़ाने में सक्षम है आदरणीय गिरिराज भंडारी जी.... सादर धन्यवाद....
आप गीत के मर्म तक पहुँची एवं अपनी प्रतिक्रिया दी, इसके लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीया राजेश कुमारी जी....
आदरणीय सुशील जी बहुत बढ़िया छंद लिखा है । सही कहा है आपने --जब से अपने जुदा हो गए , ख्वाहिशें सब फना हो गयी । गम और ख़ुशी में अपनों का साथ होना बहुत ज़रूरी है । क्योंकि अपनों के बिना ख्वाहिशें बेमानी हो जाती हैं । आपको बहुत-बहुत बधाई ।
आदरणीय सुशील भाई , बहुत सुन्दर भाव पूर्ण गीत के लिये हार्दिक बधाई !!!!!
दर्द के कुछ थपेड़ों ने आकर के फिर,
तोड़ डाला मेरे एक अरमान को,
ज़ख्म जितने मिले, सारे दिल पे लगे,
चोट पहुँची मेरे मान सम्मान को,
गल्तियाँ उनको सब माफ़ थीं, हमने की तो ख़ता हो गई,
मौत भी जैसे नाराज़ है, ज़िंदगी बेवफा हो गई, वाह्ह्ह्ह बहुत सुन्दर हृदय स्पर्शी गीत ,बहुत बढ़िया लिखा है ,हार्दिक बधाई आपको
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online