For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बर्ताव
बर्ताव का अर्थ -- स्पर्श !
मुलायम नहीं..
गुदाज़ लोथड़ों में
लगातार धँसते जाने की बेरहम ज़िद्दी आदत

तीन-तीन अंधे पहरों में से
कुछेक लम्हें ले लेने भर से
बात बनी ही कहाँ है कभी ?


चाहिये-चाहिये-चाहिये.. और और और चाहिये
सुन्न पड़ जाने की अशक्तता तक
बस चाहिये

आगे,
देर गयी रात 

उन तीन पहरों की कई-कई आँधियों के बाद 
लोथड़े की
तेज़धार चाकू की निर्दयी नोंक
खरबूजा-खरबूजा खेलती है
सुन्न पड़े के साथ
बेमतलब सी भोर होने तक.

*******************************

-सौरभ

(मौलिक और अप्रकाशित)

 

Views: 1151

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 17, 2013 at 4:42pm

आदरणीय अरुण भाईसाहब, आपकी बधाई और बड़ाई .. . जय हो.. जय हो...   :-))))

सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 17, 2013 at 4:38pm

रचना को पसंद करने औरथोचित सम्मान देने के लिए आपका सादर धन्यवाद आदरणीया शशिजी, आदरणीय लक्ष्मण प्रसाद जी, भाई शिज्जू जी, भाई राहुलदेवजी.

आदरणीया सरिताजी, आदरणीय जवाहलालजी, आदरणीया गीतिकाजी, भाई रमेश जी,  भावाभिव्यक्ति में तनिक क्लिष्टता है इसे मैं स्वीकार करता हूँ. फिर भी मान रख लेने के लिए सादर धन्यवाद.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 17, 2013 at 4:33pm

//कहीं कहीं अतिक्रमित  होती सम्बेदनहीनता , कहीं शोषण की पराकाष्ठा, कहीं अपनी डफली अपना राग ..ये सब तो शाब्दिक अर्थ है ..पर माजरा कुछ और ही लग रहा है //

डॉक्टर साहब, आपने सामाजिक विसंगतियों को इंगितों में अभिव्यक्त होते देखा-पढ़ा है. और वही कुछ साझा हुआ है. आपने रचना को मान दिया यह मेरे लिए कम बड़ी बात नहीं.
सादर

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on October 17, 2013 at 4:06pm

पशु से कसाई का रिश्ता जग प्रसिद्ध है। कसाई पल में पशु का उद्धार कर देता है यह जानते हुए भी कि अगले जनम में उसे पशु और पशु को कसाई होना है। लेकिन यहाँ तो दोनों मानव हैं। एक कसाई बनकर दूसरे से पशुता का व्यवहार करे अपनी तृप्ति के लिए वह भी जीवन भर सोचकर ही.....। पता नहीं यह कसाई अगले जन्म में क्या बनेगा ? आ. सौरभ भाई बधाई घनी अंधेरी रात की वारदात पर रोशनी डालने के लिये ।... सादर ।

 

Comment by Sarita Bhatia on October 17, 2013 at 1:27pm

बार बार पढना पड़ता है आदरणीय सौरभ जी आपकी रचना को समझने के लिए ,गहरी बात 

Comment by CHANDRA SHEKHAR PANDEY on October 17, 2013 at 4:23am

माननीय सौरभ सर, मानवीय रिश्तों मे समाहित विद्रूपता और शारीरिक आयामों के विकृत पक्ष तक सीमित हो चुके मानवीय संबंधों को सुन्दरता से चित्रित करने हेतु बधाई। आत्मिक पक्षों से विमुख निकॄष्टतम शारीरिक अधस्तल में मोक्ष खोजते परपीड़ा मे सुख की मॄगमरीचिका तलाशते मानव की अधोगति का मार्मिक चित्रण। कोटिशः बधाईयाँ


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on October 17, 2013 at 12:04am

अव्यक्त को व्यक्त कर पाना लगभग असम्भव सा कार्य है और असम्भव को सम्भव कर पाना ही शायद रचनाकर्म है. आदरणीय सौरभ भाई जी "रिश्ते" को नमन.................

Comment by रमेश कुमार चौहान on October 16, 2013 at 10:38pm

आदरणीय आपकी इस रचना को दस बार पढकर आपको नि:शब्द हो नमन करता हूँ ।

Comment by वेदिका on October 16, 2013 at 8:30pm

हाँ ! एकदम सही लिखा आपने|

तारीफ के बोल कह पाने मे तो सक्षम नही हूँ, अपितु अंतरतम से आभार आपने ये रचना हमसे साझा की|

सादर !! 

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on October 16, 2013 at 8:04pm

बार बार पढूं, समझूं ... बस इतना ही कहूं ! सादर महोदय ...

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Aazi Tamaam posted a blog post

तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या

२१२२ २१२२ २१२२ २१२इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्यावैसे भी इस गुफ़्तगू से ज़ख़्म भर…See More
7 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"परम् आदरणीय सौरभ पांडे जी सदर प्रणाम! आपका मार्गदर्शन मेरे लिए संजीवनी समान है। हार्दिक आभार।"
17 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . . . विविध

दोहा सप्तक. . . . विविधमुश्किल है पहचानना, जीवन के सोपान ।मंजिल हर सोपान की, केवल है  अवसान…See More
23 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"ऐसी कविताओं के लिए लघु कविता की संज्ञा पहली बार सुन रहा हूँ। अलबत्ता विभिन्न नामों से ऐसी कविताएँ…"
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

छन्न पकैया (सार छंद)

छन्न पकैया (सार छंद)-----------------------------छन्न पकैया - छन्न पकैया, तीन रंग का झंडा।लहराता अब…See More
yesterday
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"आदरणीय सुधार कर दिया गया है "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"आ. भाई सुरेश जी, सादर अभिवादन। बहुत भावपूर्ण कविता हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
Aazi Tamaam posted a blog post

ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के

२२ २२ २२ २२ २२ २चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल केहो जाएँ आसान रास्ते मंज़िल केहर पल अपना जिगर जलाना…See More
Monday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

गहरी दरारें (लघु कविता)

गहरी दरारें (लघु कविता)********************जैसे किसी तालाब कासारा जल सूखकरतलहटी में फट गई हों गहरी…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

212/212/212/212 **** केश जब तब घटा के खुले रात भर ठोस पत्थर  हुए   बुलबुले  रात भर।। * देख…See More
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन भाईजी,  प्रस्तुति के लिए हार्दि बधाई । लेकिन मात्रा और शिल्पगत त्रुटियाँ प्रवाह…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ भाईजी, समय देने के बाद भी एक त्रुटि हो ही गई।  सच तो ये है कि मेरी नजर इस पर पड़ी…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service