बर्ताव
बर्ताव का अर्थ -- स्पर्श !
मुलायम नहीं..
गुदाज़ लोथड़ों में
लगातार धँसते जाने की बेरहम ज़िद्दी आदत
तीन-तीन अंधे पहरों में से
कुछेक लम्हें ले लेने भर से
बात बनी ही कहाँ है कभी ?
चाहिये-चाहिये-चाहिये.. और और और चाहिये
सुन्न पड़ जाने की अशक्तता तक
बस चाहिये
आगे,
देर गयी रात
उन तीन पहरों की कई-कई आँधियों के बाद
लोथड़े की
तेज़धार चाकू की निर्दयी नोंक
खरबूजा-खरबूजा खेलती है
सुन्न पड़े के साथ
बेमतलब सी भोर होने तक.
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-सौरभ
(मौलिक और अप्रकाशित)
Comment
आदरणीय अरुण भाईसाहब, आपकी बधाई और बड़ाई .. . जय हो.. जय हो... :-))))
सादर
रचना को पसंद करने औरथोचित सम्मान देने के लिए आपका सादर धन्यवाद आदरणीया शशिजी, आदरणीय लक्ष्मण प्रसाद जी, भाई शिज्जू जी, भाई राहुलदेवजी.
आदरणीया सरिताजी, आदरणीय जवाहलालजी, आदरणीया गीतिकाजी, भाई रमेश जी, भावाभिव्यक्ति में तनिक क्लिष्टता है इसे मैं स्वीकार करता हूँ. फिर भी मान रख लेने के लिए सादर धन्यवाद.
//कहीं कहीं अतिक्रमित होती सम्बेदनहीनता , कहीं शोषण की पराकाष्ठा, कहीं अपनी डफली अपना राग ..ये सब तो शाब्दिक अर्थ है ..पर माजरा कुछ और ही लग रहा है //
डॉक्टर साहब, आपने सामाजिक विसंगतियों को इंगितों में अभिव्यक्त होते देखा-पढ़ा है. और वही कुछ साझा हुआ है. आपने रचना को मान दिया यह मेरे लिए कम बड़ी बात नहीं.
सादर
पशु से कसाई का रिश्ता जग प्रसिद्ध है। कसाई पल में पशु का उद्धार कर देता है यह जानते हुए भी कि अगले जनम में उसे पशु और पशु को कसाई होना है। लेकिन यहाँ तो दोनों मानव हैं। एक कसाई बनकर दूसरे से पशुता का व्यवहार करे अपनी तृप्ति के लिए वह भी जीवन भर सोचकर ही.....। पता नहीं यह कसाई अगले जन्म में क्या बनेगा ? आ. सौरभ भाई बधाई घनी अंधेरी रात की वारदात पर रोशनी डालने के लिये ।... सादर ।
बार बार पढना पड़ता है आदरणीय सौरभ जी आपकी रचना को समझने के लिए ,गहरी बात
माननीय सौरभ सर, मानवीय रिश्तों मे समाहित विद्रूपता और शारीरिक आयामों के विकृत पक्ष तक सीमित हो चुके मानवीय संबंधों को सुन्दरता से चित्रित करने हेतु बधाई। आत्मिक पक्षों से विमुख निकॄष्टतम शारीरिक अधस्तल में मोक्ष खोजते परपीड़ा मे सुख की मॄगमरीचिका तलाशते मानव की अधोगति का मार्मिक चित्रण। कोटिशः बधाईयाँ
अव्यक्त को व्यक्त कर पाना लगभग असम्भव सा कार्य है और असम्भव को सम्भव कर पाना ही शायद रचनाकर्म है. आदरणीय सौरभ भाई जी "रिश्ते" को नमन.................
आदरणीय आपकी इस रचना को दस बार पढकर आपको नि:शब्द हो नमन करता हूँ ।
हाँ ! एकदम सही लिखा आपने|
तारीफ के बोल कह पाने मे तो सक्षम नही हूँ, अपितु अंतरतम से आभार आपने ये रचना हमसे साझा की|
सादर !!
बार बार पढूं, समझूं ... बस इतना ही कहूं ! सादर महोदय ...
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