कहाँ है कील, शर, नश्तर कहाँ है
मेरा काँटों भरा, बिस्तर कहाँ है//१
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उठा के मार, मंदिर में पड़ा ‘वो’
भला क्या पूछना, पत्थर कहाँ है//२
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तभी सोंचू के, मैं क्यूँ उड़ रहा हूँ
अमीरों क़र्ज़ का, गट्ठर कहाँ है//३
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लगे मय पी रहा है, आज वो भी
जहर पीता था, वो शंकर कहाँ है//४
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बुराई झाँकती है, देख दिल से
छुपा उसको, तेरा अस्तर कहाँ है//५
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सपोलें मारने से, कुछ न होगा
चलो खोजें छिपा, अजगर कहाँ है//६
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न तुम ढूंढो उसे, दैरो-हरम में
कहोगे फिर, ख़ुदा घर पर कहाँ है//७
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कुहासा बढ़ रहा है, फिर गली में
बताओ माँ, मेरी चादर कहाँ है//८
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क़लम है ‘नाथ’ माँ है रौशनाई
कभी ढूँढा नहीं, दिलबर कहाँ है//९
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"मौलिक व अप्रकाशित"
वज्न : कहाँ-12/है-2/कील-21/शर-2/नश्तर-22/कहाँ-12/है-2 [1222-1222-122]
Comment
वाह बहुत खुबसूरत अशआर ,बधाई जी
आदरणीय रामनाथ जी, छोटी बहर की शानदार गज़ल का हर अश'आर लाजवाब है.
सपोलें मारने से, कुछ न होगा
चलो खोजें छिपा, अजगर कहाँ है//............वाह !!!!!
आदरनीय राम भाई , आपकी गजल बहुत ही उम्दा ,हर शे'र का खना ,आपके शे'र तो अक्सर पढने को मिलते हें -बधाई हो ये बहुत अच्छा लगा
तभी सोंचू के, मैं क्यूँ उड़ रहा हूँ
अमीरों क़र्ज़ का, गट्ठर कहाँ है//३
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सुंदर भावों से सुसज्जित इस गज़ल के लिए दिली दाद स्वीकारें आदरणीय रामनाथ जी....
आदरणीय शोधार्थी भार्इ जी, वाह! खूब सूरत गजल के लिए हार्दिक बधार्इ स्वीकारें। सादर,
बहुत ख़ूब ग़ज़ल... बहुत बहुत बधाई
आदरणीय राम नाथ भाई , बेहतरीन गज़ल !!! सभी शेर उम्दा कहे है !!!
सपोलें मारने से, कुछ न होगा
चलो खोजें छिपा, अजगर कहाँ है//६ -------- वाह वा ........... ढेरों दाद कुबूल करें !!!
सपोलें मारने से, कुछ न होगा
चलो खोजें छिपा, अजगर कहाँ है//६
.....bahut khoob आ. शोधार्थी जी अच्छे अश'आर हुए हैं हार्दिक बधाई आपको
बढ़िया आदरणीय रामनाथ जी अच्छे भावों से सजी ग़जल के लिये बधाई
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