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फ़िदा है रूह उसी पर, जो अजनबी सी है 
वो अनसुनी सी ज़बाँ, बात अनकही सी है//१ 
.
धनक है, अब्र है, बादे-सबा की ख़ुशबू है 
वो बेनज़ीर निहाँ, अधखिली कली सी है//२ 
.
कभी कुर्आन की वो, पाक़ आयतें जैसी 
लगे अजाँ, कभी मंदिर की आरती सी है//३ 
.
ख़फ़ा जो हो तो, लगे चाँदनी भी मद्धम है 
ख़ुदा का नूर है, जन्नत की रौशनी सी है//४ 
.
वो क़त्अ, गीत, ग़ज़ल, नज़्म है रुबाई भी 
ख़याल पाक़ मुक़म्मल, वो शाइरी सी है//५ 
.
हवा है, आग़ है, दरिया है, आसमां है वो 
ज़मीं की गोद में सिमटी, वो ज़िंदगी सी है//६ 
.
वो दिलनशीन जवां, मयकदे की ज़ीनत है 
लगे वो मय की सुराही, वो मयकशी सी है//७ 
.
वो बूँद ओस की, जलता हुआ जज़ीरा मैं 
वो ख़्वाबगाहे तमन्ना है, जलपरी सी है//८ 
.
कभी है 'नाथ' की राधा कभी वो मीरा है 
वो सुर है ताल है सरगम है बाँसुरी सी है//९ 

.

"मौलिक व अप्रकाशित"

वज्न : फ़िदा-12/है-1/रूह-21/उसी-12/पर-2/जो-1/अजनबी-212/सी-2/है-2  [1212-1122-1212-22]

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Comment by Sushil.Joshi on October 17, 2013 at 8:19pm

खूबसूरत गज़ल कही है रामनाथ भाई..... बधाई हो....

वो बूँद ओस की, जलता हुआ जज़ीरा मैं 
वो ख़्वाबगाहे तमन्ना है, जलपरी सी है........ वाह क्या शेर है भाई जी....

Comment by बृजेश नीरज on October 17, 2013 at 6:59pm

भाई जी बहुत अच्छी ग़ज़ल कही आपने! आपको हार्दिक बधाई!

आपने ग़ज़ल शुरू की- //फ़िदा है रूह उसी पर, जो अजनबी सी है// बाकी जो है माशूक की तारीफ़ में कहा गया है!

अंत में आप कहते है- //कभी है 'नाथ' की राधा कभी वो मीरा है// ये कांसेप्ट मुझे अटपटा लगा. हम जिसकी तारीफ़ में कसीदे पढ़ें अंत में उसी को राधा और मीरा बना दें!

भाई जी, ये मेरा अपना सोचना है! जरूरी नहीं कि आप या अन्य लोग इससे सहमत हों!

सादर! 

Comment by Saarthi Baidyanath on October 17, 2013 at 5:43pm

बेजोड़ ! ...क्या छुवन है शब्दों की , क्या लचक है लफ़्ज़ों की !..निहायत ही खुबसूरत ग़ज़ल हुई है जनाब ! मुबारक :)

Comment by रामनाथ 'शोधार्थी' on October 17, 2013 at 4:47pm

गुजारिश यह भी है की...अगर कहीं आपको लग रहा है..इस अल्फ़ाज़ की जगह शायद !!..यह रहता हो बस मजा आ जाता...तो बेशक इस्तकबाल है आप महानुभावों के मशवरे का...व्याकरण दोष, अन्य बारीकियों की तरफ अगर आप इशारा करें तो..बन्दे का इस प्रबुद्ध परिवार से जुड़ना सार्थक हो जाये.......चरण वंदन...!!!!!!

Comment by रामनाथ 'शोधार्थी' on October 17, 2013 at 4:43pm

तहे-दिल से शुक्रगुजार हूँ..ममनून और मशकूर हूँ...ज़नाब सलीम रज़ा साहब, शकूर साहब, आ. अभिनव अरुण साहब, आदरणीया सरिता भाटिया जी, परम आदरणीय गिरिराज भंडारी साहब.....नमन इस स्नेहाशीष के लिए...बस अपना आशीर्वाद यूँ ही बनाये रखें..ग़ज़ल सुधरती निखरती...चली जाएगी...और अपने मुक़ाम तक पहुंचेगी......

ख़ामियों की तरफ भी अगर इशारा हो जाये..तो बड़ी मेहरबानी....नमन सहित....!!!!!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 17, 2013 at 1:44pm

आदरणीय राम नाथ भाई , बहुत खूब सूरत गज़ल कही है !!!! हर शेर काबिले दाद है !!! बहुत बधाई !!!

Comment by Sarita Bhatia on October 17, 2013 at 1:21pm

उम्दा 

Comment by Abhinav Arun on October 17, 2013 at 12:16pm

बेहतरीन , उम्दा , लाजवाब !!!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on October 17, 2013 at 11:15am

भाई रामनाथ जी मेरे विचार भी जनाब सलीम से मिलते हैं क्या खूबसूरत ग़ज़ल कही है आपने दिली दाद कुबूल करें

Comment by SALIM RAZA REWA on October 17, 2013 at 10:16am

RAM NATH JI ..PURI GAZAL KHUBSURAT HAI ..

KIS SHER KI TAREEF KARU HAR SER MEN AAPNE

DIL KO NICHOD KE RAKH DIYA HAI 

   --bahut dino bad achhi gazal pdhne ko mili 

     dili duaanen

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