For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

रंगीन पन्ने (लघु कथा)// शुभ्रांशु पाण्डेय

"धत्त्तेरे की... क्या भर देते हैं ये न्यूजपेपरों के बीच में..", मैने एकबारग़ी झल्लाते हुये कहा.


कई रंग-बिरंगे पैम्फलेट मेरे अखबार से निकल कर सरसराते हुए जमीन पर गिरते गये. इन रंगीन पन्नों में बच्चे के प्रेप में एडमिशन से ले कर नये-नये खुले इन्जिनिरिंग कॉलेज में दाखिले तक के, साड़ी खरीदने से ले कर मकान खरीद लेने तक के, या और भी न जाने क्या-क्या उपलब्ध करा देने के दावे हुआ करते हैं.
महरी झाडू लगाते हुए उन रंगीन पन्नों को बुहार कर घर के बाहर पेड़ के पास फेंक आयी, कचड़ावाले को उठा ले जाने के लिए. 

पेड़ ने चुप-चाप एक नजर उन रंगीन पन्नों पर डाली. उसे कहीं दूर अपने भाई-बन्धुओं पर कुल्हाड़ों के चलने की आवाज सुनायी दे रही थी.. ठक् ठक् ठक्....... 
नम आँखें बद किये पेड़ देर तक सिहरता रहा.... 

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 998

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 21, 2017 at 9:44pm

पेड़ के दर्द को खूब उकेरा है आपने आदरणीय | बहुत बढ़िया कथा हुई है , हार्दिक बधाई आपको |

Comment by Shubhranshu Pandey on October 19, 2013 at 7:55pm

आदरणीय राजेश कुमारी जी, कथा के चरम् को पकड़ने और उसका विस्तार देने के लिये आभार. 

Comment by Shubhranshu Pandey on October 19, 2013 at 7:49pm

आदरणीय गणेश भैया, लघुकथा पर आपसे सकारात्मक प्रतिक्रिया पाने पर, सच कहूँ तो मन हर्षित है. आप लोगों को पढ़ कर समझ कर सीख कर ही पहली लघु कथा डालने का प्रयास किया है. जो अब आपके सामने है.

सादर. 

Comment by Shubhranshu Pandey on October 19, 2013 at 7:44pm

आदरणीय अजीत जी, रचना अच्छी लगी इसके लिये आभार. 

Comment by Shubhranshu Pandey on October 19, 2013 at 7:43pm

आदरणीया गीतिका जी, रचना पसंद आयी ये मेरे लिये उत्साह वर्धक है.

सादर.

Comment by Shubhranshu Pandey on October 19, 2013 at 7:40pm

आदरणीय कुन्ती जी, आपने इस कथा को जो विस्तार दिया है उसके लिये आभार. वृक्ष की सिहरन ने आपको दूर तक छुआ ये जान कर संतोष हुआ. 

जगदीश चन्द्र बसु जी ने केवल सजीव अचल में जीवन की बात की थी. लेकिन साहित्यकार तो जड़ चेतन सभी से भाव मनोभाव निकाल लेते हैं... हा...हा...हा...

Comment by Shubhranshu Pandey on October 19, 2013 at 7:07pm

आदरणीय बृजेश नीरज जी, आपने लघु कथा पर अपना समय दिया इसके लिये लिये आभार. वैसे इस मंच पर इस लघुकथा के पहले मैने कुछ हास्य वंग की रचनायें डाली हैं, शायद आपका ध्यान पाने में असफ़ल रहा जिसका मुझे अफ़सोस है. 

इस रचना पर अपनी प्रतिक्रिया देने के लिये एक बार फ़िर से आभार. 

Comment by Shubhranshu Pandey on October 19, 2013 at 7:01pm

आदरणीय सौरभ भैया,

पहली लघु कथा को डालने में डर लग रहा था. अभी तक लम्बी कथा या हास्य व्यंग लिखने में शब्दों पर इतनी राशनिंग नहीं होती थी. लेकिन आप लोगों के उत्साहवर्धन ने एक आत्म बल प्रदान किया है. लगता है आप सुधी जनों को संतुष्ट करने में सफ़लता पायी है. 

सादर.

 

Comment by Shubhranshu Pandey on October 19, 2013 at 6:49pm

आपके प्रोत्साहन से आत्मसंतुष्टि का अहसास होता है आदरणीय वीनस जी, बहुत आभार. 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 18, 2013 at 11:07pm

पेड़ ने चुप-चाप एक नजर उन रंगीन पन्नों पर डाली. उसे कहीं दूर अपने भाई-बन्धुओं पर कुल्हाड़ों के चलने की आवाज सुनायी दे रही थी.. ठक् ठक् ठक्..महज इस पंक्ति में ही इस लघु कथा का मर्म समाया हुआ है,अपने स्वार्थ के लिए प्रकृति पर अत्याचार करते इंसान और वही प्रकृति  मानव को क्या कुछ नहीं देती ----वृक्ष पन्नों को देखते हुए यही सोच रहा है कि इनको बनाने के लिए भी उसके भाई बंधुओं की बलि चढाई गई होगी और कुल्हाड़ी की आवाज से काँप उठता है कि न जाने उसका भी नंबर कब आ जाए और न जाने कब वो भी इन रंगीन पन्नो में तब्दील होकर यूँ कबाड़ी की या कचरे वाले की टोकरी में पंहुच जाए| बहुत मार्मिक लघु कथा जो अपना सन्देश देने में सक्षम है बहुत- बहुत बधाई शुभ्रांशु जी|   

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

भादों की बारिश

भादों की बारिश(लघु कविता)***************लाँघ कर पर्वतमालाएं पार करसागर की सर्पीली लहरेंमैदानों में…See More
7 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . . . विविध

मंजिल हर सोपान की, केवल है  अवसान ।मुश्किल है पहचानना, जीवन के सोपान ।। छोटी-छोटी बात पर, होने लगे…See More
7 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय चेतन प्रकाश भाई ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक …"
11 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सुशील भाई  गज़ल की सराहना कर उत्साह वर्धन करने के लिए आपका आभार "
11 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , उत्साह वर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार "
11 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"विगत दो माह से डबलिन में हूं जहां समय साढ़े चार घंटा पीछे है। अन्यत्र व्यस्तताओं के कारण अभी अभी…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"प्रयास  अच्छा रहा, और बेहतर हो सकता था, ऐसा आदरणीय श्री तिलक  राज कपूर साहब  बता ही…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"अच्छा  प्रयास रहा आप का किन्तु कपूर साहब के विस्तृत इस्लाह के बाद  कुछ  कहने योग्य…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"सराहनीय प्रयास रहा आपका, मुझे ग़ज़ल अच्छी लगी, स्वाभाविक है, कपूर साहब की इस्लाह के बाद  और…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आपका धन्यवाद,  आदरणीय भाई लक्ष्मण धानी मुसाफिर साहब  !"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"साधुवाद,  आपको सु श्री रिचा यादव जी !"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"धन्यवाद,  आज़ाद तमाम भाई ग़ज़ल को समय देने हेतु !"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service