"धत्त्तेरे की... क्या भर देते हैं ये न्यूजपेपरों के बीच में..", मैने एकबारग़ी झल्लाते हुये कहा.
कई रंग-बिरंगे पैम्फलेट मेरे अखबार से निकल कर सरसराते हुए जमीन पर गिरते गये. इन रंगीन पन्नों में बच्चे के प्रेप में एडमिशन से ले कर नये-नये खुले इन्जिनिरिंग कॉलेज में दाखिले तक के, साड़ी खरीदने से ले कर मकान खरीद लेने तक के, या और भी न जाने क्या-क्या उपलब्ध करा देने के दावे हुआ करते हैं.
महरी झाडू लगाते हुए उन रंगीन पन्नों को बुहार कर घर के बाहर पेड़ के पास फेंक आयी, कचड़ावाले को उठा ले जाने के लिए.
पेड़ ने चुप-चाप एक नजर उन रंगीन पन्नों पर डाली. उसे कहीं दूर अपने भाई-बन्धुओं पर कुल्हाड़ों के चलने की आवाज सुनायी दे रही थी.. ठक् ठक् ठक्.......
नम आँखें बद किये पेड़ देर तक सिहरता रहा....
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
अनायास सी कोई घटना हो और संवेदना मुखर हो अपनी रौ में बहने लगे तो रचनाएँ प्रसूत होती हैं.
किसी रचनाकार की किसी विधा में कोई पहली कृति सदा से उसके लिए विशेष हुआ करती है. यदि वह सफल हो जाये तो उस रचना की अहमियत उसकी नज़र में और बढ़ जाती है.
संभवतः यह पहली लघुकथा है.
इस सफल लघुकथा के लिए बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएँ
क्या शानदार बात कह दी भाई .... कामयाब कथा कही
आहा...... कितनी वेदना है इस लघु कथा में.... पेड़ की वेदना..... उन पर चलने वाली कुल्हाड़ी से उनके ह्रदय से निकली चीख..... इस खूबसूरत लघु कथा के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय शुभ्रांशु जी...
आदरणीय शुभ्रांशु जी , जंगलो की अनावश्यक कटाई से उपजे वृक्ष के दुख को बखूबी शब्द दिया है आपने !!!! बहुत बधाई आपको !!!!
आदरणीय शुभ्रांशु जी पेड़ की मार्मिकता को दर्शाती हुई कथा
संदेश्तामक ,बहुत बहुत बधाई
अद्भुत... वृक्ष की पीड़ा बखूबी चित्रित हुई है आदरणीय शुभ्रांशु जी ...संसाधनों के सार्थक उपयोग को प्रेरित करती लघुकथा अपने उद्देश्य में सफल है ..बहुत साधुवाद ..बहुत शुभकामनाएँ !!
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