बह्र: 2122 1122 1122 22
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जिंदगी और न अब कोई पहेली होगी
फिर से हाथों में मेरे तेरी हथेली होगी
प्यार में ताने सुनाने लगी दुनिया अब तो
क्या पता था मुझे नाम उसके हवेली होगी
कान किसने भरे उसके वो खफा है मुझसे
वो कोई और नहीं उसकी सहेली होगी
इश्क करती है किसी से वो इबादत की तरह
वो मुहब्बत के शहर में तो नवेली होगी
है खबर आज शहर में तू नहीं है शायद
चांदनी आज तेरे छत पे अकेली होगी
-शकील जमशेदपुरी
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*मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
है खबर आज शहर में तू नहीं है शायद
चांदनी आज तेरे छत पे अकेली होगी......
ये अंदाज़ पसंद आया, साहब. .. !!
लेकिन आपसे एक उम्मीद बनी है. उसे पूरा होते देखना चाहता हूँ. वो ये ग़ज़ल तो पूरा नहीं कर पा रही है, साहब.
कई अश’आर पग नहीं पाये, जबकि ख़याल ग़ज़ब का है
शुभेच्छाएँ
है खबर आज शहर में तू नहीं है शायद
चांदनी आज तेरे छत पे अकेली होगी---------kya khoob kahan hai .....nihayat hi khoobsoorat sher kahe hai ..........mahodaya ...........sab ke sab sher ik se ik hai ...khushamdeed
आदरणीय शकील भाई , लाजवाब गज़ल कही है !!!! आपको हार्दिक बधाई !!!!
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