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गजल: चांदनी आज तेरे छत पे अकेली होगी/शकील जमशेदपुरी

 बह्र: 2122 1122 1122 22

________________________________

जिंदगी और न अब कोई पहेली होगी
फिर से हाथों में मेरे तेरी हथेली होगी

प्यार में ताने सुनाने लगी दुनिया अब तो
क्या पता था मुझे नाम उसके हवेली होगी

कान किसने भरे उसके वो खफा है मुझसे
वो कोई और नहीं उसकी सहेली होगी

इश्क करती है किसी से वो इबादत की तरह
वो मुहब्बत के शहर में तो नवेली होगी

है खबर आज शहर में तू नहीं है शायद
चांदनी आज तेरे छत पे अकेली होगी

-शकील जमशेदपुरी

________________________

*मौलिक एवं अप्रकाशित

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 19, 2013 at 11:42pm

है खबर आज शहर में तू नहीं है शायद
चांदनी आज तेरे छत पे अकेली होगी...... 

ये अंदाज़ पसंद आया, साहब. .. !!

लेकिन आपसे एक उम्मीद बनी है. उसे पूरा होते देखना चाहता हूँ. वो ये ग़ज़ल तो पूरा नहीं कर पा रही है, साहब. 

कई अश’आर पग नहीं पाये, जबकि ख़याल ग़ज़ब का है

शुभेच्छाएँ

Comment by ajay sharma on October 19, 2013 at 10:21pm

है खबर आज शहर में तू नहीं है शायद
चांदनी आज तेरे छत पे अकेली होगी---------kya khoob kahan hai .....nihayat hi khoobsoorat sher kahe hai ..........mahodaya ...........sab ke sab sher ik se ik hai ...khushamdeed 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 19, 2013 at 6:05pm

आदरणीय शकील भाई , लाजवाब गज़ल कही है !!!! आपको हार्दिक बधाई !!!!

कृपया ध्यान दे...

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