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भेज रहा हूँ तुझे निमंत्रण........अरुण कुमार निगम

जीवन क्या है ? तुहिन सूक्ष्म कण
क्यों ना तुझ पर करूँ समर्पण....

दूर्वादल के क्षणिक पाहुने
संग लिये आती है ऊषा
प्राची के आँचल में रश्मि
बिखरा देती है मंजूषा
बीन-बीन ले जातीं किरणें
तुहिन बिंदु सम जीवन के क्षण......

ना द्युति मेरी,ना छवि मेरी
है सारा सौंदर्य पराया
बल गुरुत्व का, देह सँवारे
मन को लुभा रही है माया
तृषा बढ़ाती मृग-तृष्णायें
फैलाकर अपना आकर्षण......

उतरा था कल शून्य व्योम से
कुछ पल में है वापस जाना
स्पंदन का कहाँ बसेरा
जब श्वासों का नहीं ठिकाना
पग-पग रिझा रहा है फिर भी
जगती का मायावी दर्पण......

अपनी इच्छा से कब आया
तू ही लाया , तू ले जाना
रंगमंच का सूत्रधार तू
तेरा ही सब ताना-बाना
मिलन-आस का दीप जलाये
भेज रहा हूँ तुझे निमंत्रण......

(मौलिक व अप्रकाशित)

अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)

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Comment by Sushil.Joshi on October 24, 2013 at 7:35pm

तृषा बढ़ाती मृग-तृष्णायें
फैलाकर अपना आकर्षण............ वाह वाह आदरणीय अरुन कुमार जी....

उतरा था कल शून्य व्योम से
कुछ पल में है वापस जाना
स्पंदन का कहाँ बसेरा
जब श्वासों का नहीं ठिकाना
पग-पग रिझा रहा है फिर भी
जगती का मायावी दर्पण......... अद्भुत........ समझ नहीं आता किस पंक्ति या बंद पर वाह करूँ किस पर नहीं..... इस अनुपम कृति हेतु कोटि कोटि प्रणाम एवं बधाई....

Comment by राजेश 'मृदु' on October 22, 2013 at 2:17pm

अत्‍यंत सुंदर रचना, ऐसा जैसे शरद पूर्णिमा में भींगें शब्‍द रोम-रोम को छूते फिसलते चलते हैं, बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति, सादर

Comment by vandana on October 22, 2013 at 7:29am


ना द्युति मेरी,ना छवि मेरी
है सारा सौंदर्य पराया
बल गुरुत्व का, देह सँवारे
मन को लुभा रही है माया
तृषा बढ़ाती मृग-तृष्णायें
फैलाकर अपना आकर्षण......

अनुपम रचना आदरणीय ....बहुत बहुत बधाई 

Comment by डॉ. अनुराग सैनी on October 21, 2013 at 11:17pm

बेहतरीन शब्द संयोजन और उम्दा भाव अर्थ | हार्दिक बधाई आपको 

Comment by annapurna bajpai on October 21, 2013 at 6:41pm

आ0 अरुण निगम जी बहुत सुंदर नवगीत रचना के लिए हार्दिक बधाई । 

Comment by mohinichordia on October 21, 2013 at 7:10am

बहुत सुन्दर रचना .बधाई अरुण निगम जी 

Comment by वेदिका on October 21, 2013 at 2:53am

प्रकृति के सान्निध्य मे अति सुंदर नवगीत की रचना प्रस्तुत हुयी|   गीत के सभी बंद अतुल्य सुंदर रचे है| शब्द संयोजन श्रेष्ठ है| आपको बहुत बहुत बधाई आ० अरुण जी!! 


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Comment by sharadindu mukerji on October 21, 2013 at 12:20am

आदरणीय अरुण जी, शायद पहली बार आपकी रचना पर मंतव्य कर रहा हूँ. बहुत अच्छा लगा...विशेषकर अंतिम पद की अंतिम पंक्तियाँ. सादर.

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on October 20, 2013 at 3:03pm

है सारा सौंदर्य पराया.....  मन को लुभा रही है माया ।

प्रकृति  का सुंदर चित्रण, बधाई  अरुण भाई  

Comment by Meena Pathak on October 20, 2013 at 11:40am

बहुत सुन्दर रचना ... बधाई स्वीकारे आदरणीय अरुण जी 

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