जीवन क्या है ? तुहिन सूक्ष्म कण
क्यों ना तुझ पर करूँ समर्पण....
दूर्वादल के क्षणिक पाहुने
संग लिये आती है ऊषा
प्राची के आँचल में रश्मि
बिखरा देती है मंजूषा
बीन-बीन ले जातीं किरणें
तुहिन बिंदु सम जीवन के क्षण......
ना द्युति मेरी,ना छवि मेरी
है सारा सौंदर्य पराया
बल गुरुत्व का, देह सँवारे
मन को लुभा रही है माया
तृषा बढ़ाती मृग-तृष्णायें
फैलाकर अपना आकर्षण......
उतरा था कल शून्य व्योम से
कुछ पल में है वापस जाना
स्पंदन का कहाँ बसेरा
जब श्वासों का नहीं ठिकाना
पग-पग रिझा रहा है फिर भी
जगती का मायावी दर्पण......
अपनी इच्छा से कब आया
तू ही लाया , तू ले जाना
रंगमंच का सूत्रधार तू
तेरा ही सब ताना-बाना
मिलन-आस का दीप जलाये
भेज रहा हूँ तुझे निमंत्रण......
(मौलिक व अप्रकाशित)
अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)
Comment
बहुत बधाई आपको इस रचना के लिए .
बहुत ही सुन्दर एवं उत्कृष्ट रचना .. भाव एवं शब्द दोनों एक दुसरे के मनो पूरक बन गए
बेहद सुंदर रचना, सुंदर शब्द सयोंजन आप के अनुभव की पराकाष्ठा को सदा दिखलाता है, बहुत बहुत बधाई आदरणीय अरुण निगम जी
वाह आदरणीय अरुण जी बहुत खूबसूरत रचना बधाई स्वीकार करें
उतरा था कल शून्य व्योम से
कुछ पल में है वापस जाना
स्पंदन का कहाँ बसेरा
जब श्वासों का नहीं ठिकाना
पग-पग रिझा रहा है फिर भी
जगती का मायावी दर्पण......अति सुंदर नवगीत'
प्रकृति और उसके कारकों का जो सूक्ष्म निरीक्षण आप करते हैं, आदरणीय अरुण भाईजी, वह मुग्ध कर देता है.
इस बार इनके माध्यम से आपने सूक्ष्म दर्शन के उन विन्दुओं को उठाया है जो कारण एवं कार्य तथा माया एवं सत्यात्य की व्याख्या करते हैं. तदनुरूप, प्रस्तुत गीत के चारों बन्द उच्च कोटि की भावदशा को अभिव्यक्त कर रहे हैं, आदरणीय.
इस गीत के लिए हृदय से बधाई स्वीकारें..
शुभ-शुभ
शब्द साहित्य और सीख का अद्भुत संगम ..अप्रतिम सुन्दर रचना ..हार्दिक बधाई आदरणीय श्री अरुण जी !!
आदरणीय अरुण निगम भाई , बहुत सुन्दर गीत की रचना की है आपने !!!! सुन्दर शब्द संयोजन , सुन्दर प्रवाह और भाव !!! आपको कोट्शः बधाई !!!!
आदरणीय निगम साहब, बहुत ही सुन्दर नवगीत लिखा है, शब्द दर शब्द रचना की खूबसूरती देखते ही बनती है, बहुत बहुत बधाई ।
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