For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

भेज रहा हूँ तुझे निमंत्रण........अरुण कुमार निगम

जीवन क्या है ? तुहिन सूक्ष्म कण
क्यों ना तुझ पर करूँ समर्पण....

दूर्वादल के क्षणिक पाहुने
संग लिये आती है ऊषा
प्राची के आँचल में रश्मि
बिखरा देती है मंजूषा
बीन-बीन ले जातीं किरणें
तुहिन बिंदु सम जीवन के क्षण......

ना द्युति मेरी,ना छवि मेरी
है सारा सौंदर्य पराया
बल गुरुत्व का, देह सँवारे
मन को लुभा रही है माया
तृषा बढ़ाती मृग-तृष्णायें
फैलाकर अपना आकर्षण......

उतरा था कल शून्य व्योम से
कुछ पल में है वापस जाना
स्पंदन का कहाँ बसेरा
जब श्वासों का नहीं ठिकाना
पग-पग रिझा रहा है फिर भी
जगती का मायावी दर्पण......

अपनी इच्छा से कब आया
तू ही लाया , तू ले जाना
रंगमंच का सूत्रधार तू
तेरा ही सब ताना-बाना
मिलन-आस का दीप जलाये
भेज रहा हूँ तुझे निमंत्रण......

(मौलिक व अप्रकाशित)

अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)

Views: 819

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Neeraj Neer on October 20, 2013 at 11:24am

बहुत बधाई आपको इस रचना के लिए .

Comment by Neeraj Neer on October 20, 2013 at 11:24am

बहुत ही सुन्दर एवं उत्कृष्ट रचना .. भाव एवं शब्द दोनों एक दुसरे के मनो पूरक बन गए 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on October 20, 2013 at 10:26am

बेहद सुंदर रचना, सुंदर शब्द सयोंजन आप के अनुभव की पराकाष्ठा को सदा दिखलाता है, बहुत बहुत बधाई आदरणीय अरुण निगम जी


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on October 20, 2013 at 10:06am

वाह आदरणीय अरुण जी बहुत खूबसूरत रचना बधाई स्वीकार करें

Comment by coontee mukerji on October 20, 2013 at 1:11am

उतरा था कल शून्य व्योम से
कुछ पल में है वापस जाना
स्पंदन का कहाँ बसेरा
जब श्वासों का नहीं ठिकाना
पग-पग रिझा रहा है फिर भी
जगती का मायावी दर्पण......अति सुंदर नवगीत'


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 20, 2013 at 12:48am

प्रकृति और उसके कारकों का जो सूक्ष्म निरीक्षण आप करते हैं, आदरणीय अरुण भाईजी, वह मुग्ध कर देता है.

इस बार इनके माध्यम से आपने सूक्ष्म दर्शन के उन विन्दुओं को उठाया है जो कारण एवं कार्य तथा माया एवं सत्यात्य की व्याख्या करते हैं.  तदनुरूप, प्रस्तुत गीत के चारों बन्द उच्च कोटि की भावदशा को अभिव्यक्त कर रहे हैं, आदरणीय.

इस गीत के लिए हृदय से बधाई स्वीकारें..

शुभ-शुभ

Comment by Abhinav Arun on October 19, 2013 at 6:23pm

शब्द साहित्य और सीख का अद्भुत संगम ..अप्रतिम सुन्दर रचना ..हार्दिक बधाई आदरणीय श्री अरुण जी !!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 19, 2013 at 6:23pm

आदरणीय अरुण निगम भाई , बहुत सुन्दर गीत की रचना की है आपने !!!! सुन्दर शब्द संयोजन , सुन्दर प्रवाह और भाव !!! आपको कोट्शः बधाई !!!!


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 19, 2013 at 5:24pm

आदरणीय निगम साहब, बहुत ही सुन्दर नवगीत लिखा है, शब्द दर शब्द रचना की खूबसूरती देखते ही बनती है, बहुत बहुत बधाई । 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Chetan Prakash commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post भादों की बारिश
"यह लघु कविता नहींहै। हाँ, क्षणिका हो सकती थी, जो नहीं हो पाई !"
Tuesday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

भादों की बारिश

भादों की बारिश(लघु कविता)***************लाँघ कर पर्वतमालाएं पार करसागर की सर्पीली लहरेंमैदानों में…See More
Monday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . . . विविध

मंजिल हर सोपान की, केवल है  अवसान ।मुश्किल है पहचानना, जीवन के सोपान ।। छोटी-छोटी बात पर, होने लगे…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय चेतन प्रकाश भाई ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक …"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सुशील भाई  गज़ल की सराहना कर उत्साह वर्धन करने के लिए आपका आभार "
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , उत्साह वर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार "
Monday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"विगत दो माह से डबलिन में हूं जहां समय साढ़े चार घंटा पीछे है। अन्यत्र व्यस्तताओं के कारण अभी अभी…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"प्रयास  अच्छा रहा, और बेहतर हो सकता था, ऐसा आदरणीय श्री तिलक  राज कपूर साहब  बता ही…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"अच्छा  प्रयास रहा आप का किन्तु कपूर साहब के विस्तृत इस्लाह के बाद  कुछ  कहने योग्य…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"सराहनीय प्रयास रहा आपका, मुझे ग़ज़ल अच्छी लगी, स्वाभाविक है, कपूर साहब की इस्लाह के बाद  और…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आपका धन्यवाद,  आदरणीय भाई लक्ष्मण धानी मुसाफिर साहब  !"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"साधुवाद,  आपको सु श्री रिचा यादव जी !"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service