बह्र: 212 212 212 212
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प्यार में कैसी ये त्रासदी हो गई
देख कर पीर पलकें दुखी हो गई
तेरी यादों ने दिल पे यूं दस्तक दिया
आंख बहने लगी औ नदी हो गई
संग तेरे तो बरसों भी पल भर लगा
एक पल की जुदाई सदी हो गई
प्रेम के मानकों पर जो परखा नहीं
भूल बस एक हम से यही हो गई
शेअर ऐसे नहीं हैं जो दिल पर लगे
आज फिर दर्दे दिल में कमी हो गई
कश्मकश में अभी तक पड़ा है ‘शकील’
कैसे इक शख्स की वो सगी हो गई?
-शकील जमशेदपुरी
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*मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
बहुत बहुत आभार आदरणीय वीनस सर,
आपका सुझाव पाकर धन्य महसूस कर रहा हूं।
कश्मकश में अभी तक पड़ा है ‘शकील’
कैसे इक शख्स की वो सगी हो गई?...क्या कहने शकील जी वाह आनंदित हूँ , बधाई !!
हा हा हा आख़िरी शेर ने तो लुत्फ़ आ दिया
खैर आप गई गईं में उलझ गए हैं ... कई मिसरों में वाक्य विन्यास के कारण गईं होना चाहिए और ऐसा करते ही शेर खारिज हो जाएगा और ऐसा न् किया तो वाक्य विन्यास दोष पूर्ण हो रहा है
जैसे - पलकें दुखी हो गई कि जगह पलकें दुखी हो गईं होना चाहिए ...
आंख बहने लगी औ नदी हो गई.... एक आँख तो बहती नहीं है .. इसे आँखें करना पड़ेगा और आँखें करते ही गई को गईं करना पड़ेगा
इससे बचिए ये बड़ा दोष है . इसी कारण आपकी ग़ज़ल के दो शेर खारिज हो जा रहे हैं
बहुत बहुत आभार आदरणीय रामनाथ जी...
बहुत उम्दा है शकील साहब...खासतौर पर यह शे'र मुझे बहुत पसंद आया............//.
शेअर ऐसे नहीं हैं जो दिल पर लगे
आज फिर दर्दे दिल में कमी हो गई................लाजवाब
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