क्या कहूँ ...............
आहत मन की व्यथा
कैसे सुनाऊँ.................
मन की व्याकुलता
अश्रु और व्याकुलता
साथी है परस्पर
आकुल होकर आँख भी
जब छलक जाती है
गरम अश्रुओं का लावा
कपोलों को झुलसा जाता है
न जाने कब कैसे ...................
पीर आँखों की राह
चल पड़ती है बिना कुछ कहे
आकुल मन बस यूं ही
तकता रह जाता है
भाव विहीन होकर भी
भाव पूर्ण बन जाता है जब
जिह्वा सुन्न हो जाती है तब
न जाने कब कैसे .........................
कुछ आरोपों की पोटली
फिर खुल गई
मन ने आरोपित किया
आँख को ,
फिर भर आई शायद
मन और आँख
साथी हैं परस्पर
क्या कहूँ .......................... अन्नपूर्णा बाजपेई
अप्रकाशित एवं मौलिक
Comment
बहुत ही सुन्दर भाव हैं। बधाई।
बहुत सुंदर भाव, पूर्णत: स्पष्ट, बधाई स्वीकारें आदरणीया अन्नपूर्णा जी
आदरणीया अन्नपूर्णा जी! सादर प्रणाम!-------
//मन ने आरोपित किया
आँख को ,
फिर भर आई शायद
मन और आँख
साथी हैं परस्पर
क्या कहूँ ...//
.....बहुत ही सौम्य सुन्दर। हार्दिक बधार्इ स्वीकार करे। सादर,
बहुत ही सुन्दर और गहन अभिव्यक्ति के लिए बधाई स्वीकारें आदरणीया
आदरणीय अभिनव अरुण जी , गिरिराज भंडरी जी आपका हार्दिक आभार ।
आदरणीया अन्नपूरणा जी बहुत सुन्दर भाव पूर्ण कहन आपकी , सच है आंखो का सीधा सम्बन्ध हर भावों से है !!!! आपको बधाई !!!!
मन और आँख
साथी हैं परस्पर
क्या कहूँ ..........................सुन्दर सृजन , भावपूर्ण ...हार्दिक बधाई आ. अन्नपूर्णा जी !
प्रिय गीतिका रचना का भाव पसंद आया , बहुत आभार ।
आदरणीय डॉ सैनी जी आपका हार्दिक आभार ।
मन और आंखे वाकई ही तो पूरक है एक दूसरे के| मन मे खुशी होती है तो आंखो की चमक कुछ और ही रहती है| लेकिन जब यही मन आहत होता है तो आंखे आँसू दुलका कर अपना दुख व्यक्त करती हैं| आहत मन की वेदना को आपने बखूबी शब्दों मे ढाला है|
गरम अश्रुओं का लावा
कपोलों को झुलसा जाता है .... भावुकता से भरपूर
बधाई !!
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