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क्या कहूँ .................. ( अन्नपूर्णा )

क्या कहूँ ...............

 

आहत मन की व्यथा

कैसे सुनाऊँ.................

मन की व्याकुलता 

अश्रु और व्याकुलता

साथी है परस्पर

आकुल होकर आँख भी

जब छलक जाती है

गरम अश्रुओं का लावा

कपोलों को झुलसा जाता है

न जाने कब कैसे ...................

पीर आँखों की राह

चल पड़ती है बिना कुछ कहे

आकुल मन बस यूं ही

तकता रह जाता है

भाव विहीन होकर भी

भाव पूर्ण बन जाता है जब

जिह्वा सुन्न हो जाती है तब

न जाने कब कैसे .........................

कुछ आरोपों की पोटली

फिर खुल गई

मन ने आरोपित किया

आँख को ,

फिर भर आई शायद

मन और आँख

साथी हैं परस्पर

क्या कहूँ .......................... अन्नपूर्णा बाजपेई

अप्रकाशित एवं मौलिक 

 

 

 

 

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Comment

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Comment by vijay nikore on October 23, 2013 at 7:33am

बहुत ही सुन्दर भाव हैं। बधाई।

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on October 23, 2013 at 1:44am

बहुत सुंदर भाव, पूर्णत: स्पष्ट, बधाई स्वीकारें आदरणीया अन्नपूर्णा जी

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on October 22, 2013 at 7:20pm

आदरणीया अन्नपूर्णा जी! सादर प्रणाम!-------

//मन ने आरोपित किया

आँख को ,

फिर भर आई शायद

मन और आँख

साथी हैं परस्पर

क्या कहूँ ...//

.....बहुत ही सौम्य सुन्दर। हार्दिक बधार्इ स्वीकार करे। सादर,

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on October 22, 2013 at 7:03pm

बहुत ही सुन्दर और गहन अभिव्यक्ति के लिए बधाई स्वीकारें आदरणीया

Comment by annapurna bajpai on October 22, 2013 at 1:07pm

आदरणीय अभिनव अरुण जी , गिरिराज भंडरी जी आपका हार्दिक आभार । 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 22, 2013 at 8:27am

आदरणीया अन्नपूरणा जी बहुत सुन्दर भाव पूर्ण कहन आपकी , सच है आंखो का सीधा सम्बन्ध हर भावों से है !!!! आपको बधाई !!!!

Comment by Abhinav Arun on October 22, 2013 at 7:41am

मन और आँख

साथी हैं परस्पर

क्या कहूँ ..........................सुन्दर सृजन , भावपूर्ण ...हार्दिक बधाई आ. अन्नपूर्णा जी !

Comment by annapurna bajpai on October 21, 2013 at 11:03pm

प्रिय गीतिका रचना का भाव पसंद आया , बहुत आभार । 

Comment by annapurna bajpai on October 21, 2013 at 11:02pm

आदरणीय डॉ सैनी जी आपका हार्दिक आभार । 

Comment by वेदिका on October 21, 2013 at 9:45pm

मन और आंखे वाकई ही तो पूरक है एक दूसरे के| मन मे खुशी होती है तो आंखो की चमक कुछ और ही रहती है| लेकिन जब यही  मन आहत  होता है तो आंखे आँसू दुलका कर अपना दुख व्यक्त करती हैं| आहत मन की वेदना को आपने बखूबी शब्दों मे ढाला है| 

गरम अश्रुओं का लावा

कपोलों को झुलसा जाता है  .... भावुकता से भरपूर 

बधाई !!

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