समतल उर्वर भूमि पर
उग आयी स्वतंत्रता
जंगली वृक्ष की भांति
आवृत कर लिया इसे
जहर बेल की लताओं ने
खो गयी इसकी मूल पहचान
अर्थहीन हो गए इसके होने के मायने .
..
गुलाब की पौध में,
नियमित काट छांट के आभाव में
निकल आती हैं जंगली शाख.
इनमे फूल नहीं खिलते
उगते हैं सिर्फ कांटे.
लोकतंत्र होता है गुलाब की तरह ...
… नीरज कुमार ‘नीर’
पूर्णतः मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
क्या बात कह दी आपने आ0 अरुण जी बहुत बढ़िया , बधाई आपको इस रचना हेतु ।
भाव् पूर्ण सुंदर रचना बधाई नीरज भाई। ....अभाव .. शाखें ...... कर लीजिये।
आदरणीय नीरज भाई , स्वतंत्रता और लोक तंत्र दोनो को बहुत खूबसूरती से परिभाषित कर रही है आपकी अतुकांत रचना !!! बधाई !!!!
गुलाब की पौध में,
नियमित काट छांट के आभाव में
निकल आती हैं जंगली शाख.
इनमे फूल नहीं खिलते
उगते हैं सिर्फ कांटे.
लोकतंत्र होता है गुलाब की तरह.......बहुत सुंदर प्रस्तुति.आदरणीय.
शुभ कामनाएँ सहित.
कुंती.
आदरणीय नीरज भाई जी वाह अंतिम पंक्तियाँ एकाएक अपनी ओर खीचती है. बहुत ही सुन्दर अतुकांत रचना बहुत बहुत बधाई स्वीकारें
इनमे फूल नहीं खिलते
उगते हैं सिर्फ कांटे.
लोकतंत्र होता है गुलाब की तरह .. वाह भाई वाह
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