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ग़ज़ल.....खंज़र चुभा किस धार से

2212/2212/2122/212

 दिल में तुम्हारे है जो मुझको बताना प्यार से

यूँ भूल कर हमको भला क्या मिला संसार से

यूँ जानकर रुसवा किया आज महफ़िल में भला 

जो तोड़कर नाता चले क्यूँ भला इस पार से

चुप सी है धड़कन मेरी अब दिल भी है खामोश तो

घायल हुआ दिल मेरा खंज़र चुभा किस धार से

नादान हूँ मैं या कि अहसान उनका है जरा 

वो रोक देते हैं मुझे शर्त कि दीवार से

वो प्यार के मंजर हमें आज भी भूले नहीं

दिल भी दिये,ख़त भी लिखे सब छुपा संसार से 

जो आँख में है प्यार वो क्यूँ दिखा ना यार को

जब राह देखा था कोई यूँ बड़े आसार से

अब सोहनीं, लैला कहाँ हीर की बातें करें

बस दिन गुज़रता था यहीं यार के दीदार से

तू छोड़ कर चल दे यहाँ प्यार की राहें जरा

फिर रोक ले न 'रवि' कोई यार के बाज़ार से

================================

मौलिक और अप्रकाशित-अतेन्द्र कुमार सिंह 'रवि'

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Comment by डॉ. अनुराग सैनी on October 24, 2013 at 5:32pm

अति सुन्दर भाव ! बधाई 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 24, 2013 at 11:04am

अतेन्द्र जी, आपके मतले का उला ही बेबह्र है .. 

कोशिश करते रहें. शुभेच्छाएँ

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on October 24, 2013 at 9:41am

बहुत सुंदर गजल, बधाई स्वीकारें आदरणीय अतेन्द्र जी

Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 24, 2013 at 8:25am

उम्दा प्रयास हेतु बधाई ... ग़ज़ल थोडा समय और चाह रही है. मतले में 'है तुम्हारे' की तक्तीअ पुन: देखें, आप के द्वारा योजित अनुक्रम का पालन नहीं हो रहा है.
सादर    

Comment by Atendra Kumar Singh "Ravi" on October 23, 2013 at 9:09pm

गिरीराज जी, डॉ आशुतोष जी ,अखिलेश जी, मीना पाठक जी ,राम शिरो मणि जी आप सभी को हमारी ग़ज़ल पसंद आई , बहुत बहुत धन्यवाद ...

Comment by ram shiromani pathak on October 23, 2013 at 8:18pm

 बहुत सुन्दर गज़ल,हार्दिक बधाई आपको //सादर

Comment by Atendra Kumar Singh "Ravi" on October 23, 2013 at 8:15pm

अरुण जी सबसे पहले आपको सहृदय धन्यवाद कि आपको ग़ज़ल पसंद आई ....वो लिखने में त्रुटी हो गई है जल्दी जल्दी में क्युकी लाइट कि समस्या है हमारे यहाँ वहां पर वास्तव में की ही है .....

Comment by Meena Pathak on October 23, 2013 at 7:14pm

नादान हूँ मैं या कि अहसान उनका है जरा 

वो रोक देते हैं मुझे शर्त कि दीवार से

वो प्यार के मंजर हमें आज भी भूले नहीं

दिल भी दिये,ख़त भी लिखे सब छुपा संसार से .........................बहुत सुन्दर | बधाई 

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on October 23, 2013 at 4:18pm

अतेन्द्र कुमार जी अच्छी गज़ल की बधाई। 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on October 23, 2013 at 4:11pm

आपके इस प्रयास पर हार्दिक बधाई ...अरुण जी बिलकुल सही कह रहे हैं उससे आपको काफी मदद मिलेगी 

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