कुछ सपने केवल सपने ही रह जाते हैं
बिना पूरे हुये, बिना हकीकत हुये
और हमे वो ही अच्छे लगते हैं
अधूरे सपने, बिना अपने हुये
हम जी लेते हैं
उसी अधूरेपन को
उसी खालीपन को
सपने की चाहत में
जानते हुये भी ....
सपने तो सपने हैं
सपने कहाँ अपने हैं
यथार्थ को छोड़कर
परिस्थिति से मुह मोड़कर
हम जीते हैं सपने में
सपने हम रोज देखते हैं
कुछ ही सपनो को हम जीते हैं
बाकी सपने सपने ही रह जाते हैं
सपने तो सपने हैं ...
वो कहाँ अपने हैं ....
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
आदरणीय आमोद श्रीवास्तव जी
सुन्दर कथ्य है प्रस्तुति का.. स्वप्न तो स्वप्न ही हैं ...अधूरे स्वप्न भी हमें स्वीकार्य होते हैं, क्योंकि अजीज होते हैं.
सब सपनों को न जी सकने का दर्द और स्वप्नों का पूरा न होने को स्वीकारती इस अभिव्यक्ति के लिए बधाई.
वैसे कहीं कहीं गद्यात्मकता / सपाटबयानी से बचा जा सकता था... अतुकांत रचनाओं में यही सबसे बड़ा चैलेन्ज होता है.
शुभकामनाएं
बहुत खूब आ0 अमोद जी..... एक सार्थक रचना हेतु बधाई....
आदरणीय जितेंद्र जी, बृजेश जी, मीना पाठक जी, अन्नपूर्णा जी, अखिलेश जी, गिरिराज जी, अरुण शर्मा जी आप सभी को बहुत बहुत आभार ... मेरा उत्साहवर्धन के लिए.....
जीवन की वास्तविक व् कड़वे सच का, चित्रण करती खुबसूरत पंक्तियों पर, बहुत बहुत बधाई आदरणीय अमोद जी
अच्छी रचना है!
हम जी लेते हैं
उसी अधूरेपन को
उसी खालीपन को
सपने की चाहत में
जानते हुये भी .........बहुत सुन्दर रचना | सादर बधाई स्वीकारें
सुंदर रचना आ0 आमोद जी बधाई आपको ।
आमोद भाई सपने की बधाई । सपना यदि सच होता जाये, जीना भी दूभर हो जाये ।
आदरणीय आमोद भाई , सुन्दर जीवन दर्शन !!!! आपको बधाई !!!
आदरणीय आमोद जी वास्तविकता को दर्शाती सुन्दर रचना हेतु बधाई स्वीकारें
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