मैं लेटा हूँ घास पर / सूखी भूरी घास
जिसके होने का एहसास भर है
जमीन गरम है
लेकिन लेटा हूँ
धीरे-धीरे खत्म हो जाएगी
तपन की अनुभूति
उड़े जा रहे हैं
पंछी एक ओर
शरीर के नीचे
रेंगती चींटियाँ
पास ही खेलते कुछ बच्चे
कुछ लोग भी
इधर-उधर छितरे, घूमते-बैठे
मैं निरपेक्ष
लेटा तकता आसमान
कि कभी टूटकर गिरेगा
और धरती का
रंग बदल जाएगा
- बृजेश नीरज
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
आदरणीय सुशील जी आपका हार्दिक आभार! आपका अनुमोदन बहुत महत्वपूर्ण है!
आदरणीय बृजेश भाई , आंतरिक व्यथाओं के बावज़ूद कहीं उमीद की किरण अभी भी बाक़ी है !!! बहुत सुन्दर प्रस्तुति , आपको बधाई !!!!
बहुत अच्छी प्रस्तुति आदरणीय बृजेश जी दाद कुबूल करें
अनुपम प्रस्तुति आदरणीय भाई बृजेश जी //हार्दिक बधाई आपको
ये पंक्तियाँ बहुत ही अच्छी लगीं। ...
उड़े जा रहे हैं
पंछी एक ओर
शरीर के नीचे
रेंगती चींटियाँ
पास ही खेलते कुछ बच्चे
कुछ लोग भी
इधर-उधर छितरे, घूमते-बैठे
मैं निरपेक्ष
लेटा तकता आसमान
कि कभी टूटकर गिरेगा
और धरती का
रंग बदल जाएगा
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आदरणीय बृजेश भाई जी आपकी गहन सोच जिस सुन्दरता से रचनाओं में उभर कर आती है वह अत्यंत सराहनीय है बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति आदरणीय बहुत बहुत बधाई स्वीकारें
मैं निरपेक्ष
लेटा तकता आसमान
कि कभी टूटकर गिरेगा
और धरती का
रंग बदल जाएगा.............. आप की कलम को नमन , बहुत बहुत बधाई आप को
रचना का सार ... अंतर्मन में घूमते उमड़ते ज़ज्बातों की अच्छी बयानगी कर रहा है ! कुल मिलकर ...उम्दा रचना !..नमन :)
कि कभी टूटकर गिरेगा
और धरती का
रंग बदल जाएगा.....! वाह ..उत्तम...!
मैं निरपेक्ष
लेटा तकता आसमान
कि कभी टूटकर गिरेगा
और धरती का
रंग बदल जाएगा
बेहद गहन भाव, अनुपम रचना, बहुत बहुत बधाई आदरणीय बृजेश जी
बहुत सुंदर रचना है आ0 बृजेश जी..... अवश्य ही... आज नहीं तो कल एक ऐसा वक्त आएगा जब आपकी इस रचना के भाव हक़ीकत बन कर सामने होंगे...... अवश्य ही होगा यह बदलाव....... हार्दिक बधाई इस प्रस्तुति हेतु....
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