बेहतर था
कुछ कमी न होती,
आँखों में
यूँ नमी न होती...
तुम न आते गर
‘’जान ‘’यूँ
अधूरी न होती...
बंद ही रहता
अँधेरा कमरा,
रौशनी की
फिर गुंजाइश न होती...
न देखते सपने
न पंखों की
उडान होती...
फूंका न होता
दिल अपना,
तुम्हारी हाथ सेकने की
जो फरमाइश न होती...
तुम्हारा ख्याल ही जो
झटक दिया होता,
मेरे प्यार की
फिर पैमाइश न होती...
प्यार न होता
ये हाल न होता,
यूँ मेरे खिलाफ़
फिर दुनिया न होती...
बेहतर होता
यूँ कमी न होती,
तुम्हारी मुझे
जुस्तजू न होती...
(मौलिक एव अप्रकाशित)
- प्रियंका
Comment
जितेन्द्र 'गीत' सर .... बहुत बहुत धन्यवाद ....सराहते रहे यूँही ...
रचना की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय गिरिराज भंडारी सर
सराहना हेतु आपका हार्दिक आभार, आदरणीय केवल प्रसाद सर
सुन्दर रचना आदरणीया प्रियंका जी //हार्दिक बधाई आपको
बहुत ही खूबसूरत भावों से लबरेज रचना के लिये दिल से बधाई स्वीकारें प्रियंका जी !!!!
प्रियंका जी इस खूबसूरत भावों से सजी रचना के लिये दिली दाद कुबूल करें
//फूंका न होता
दिल अपना,
तुम्हारी हाथ सेकने की
जो फरमाइश न होती...// ......... वाह, वाह...!
एक के बाद एक ... किस-किस भाव की सुन्दरता की ओर संकेत करूँ !
सारी कविता ऐसे ही कोमल भावों से भरपूर है।
हार्दिक बधाई, आदरणीया प्रियंका जी।
वाह.....सुंदर शब्द संयोजन से सुसज्जित रचना....... बधाई आ0 प्रियंका जी इस प्रस्तुति के लिए....
बेहद सुंदर शब्दों से पिरोई रचना पर, बधाई स्वीकारें आदरणीया प्रियंका जी
आदरणीया प्रियंका जी , सुन्दर प्रस्तुति के लिये बधाई !!!!
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