तुमसे इश्क में भीगी बातें करनी थीं
लेकिन किसान का मायूस चेहरा
आता रहा बार-बार सामने
तुम्हारी घनी जुल्फों के साए में छुपना था
कि कार्तिक मास में
असमय छाये काले पनीले
मनहूस बादलों ने ग़मगीन किया मुझे
तुम्हारी खनकती हंसी सुननी थी
कि किसानो के आर्तनाद ने रोक लिया
तुम्हे मालूम है
कि बाज़ार
नए नये उत्पादों से अटा-पटा है
कि दिवाली के लिए मध्य वर्ग
कर रहा भरपूर खरीदारी
कितनी भीड़ है गहने जेवर की दुकानों में
खुशियों से लबरेज़ हैं भरपेटों के चेहरे
और ऐसे में
उदासी में डूबे हैं मेरे आस-पास के खलिहान
चिंता में मगन हैं मेहनतकश किसान
दूर दूर तक नही दीखता समाधान
ऐसे बेदर्द समय में मेरी जान
कैसे गा सकता हूँ मैं
प्यार-मुहब्बत के गान..........
Comment
सुंदर अभिव्यक्ति, सही है कि जब पेट खाली हो तो इश्क नहीं सूझता, सादर
क्या बात है आ0 अनवर सुहैल जी , कितनी बढ़िया बात कही आपने अपनी रचना के मधायम से , काश !! सभी ऐसा सोच पाते । आपको बहुत बधाई इस रचना कर्म के लिए ।
किसानों के मर्म को बयान करती एक सुंदर अभिव्यक्ति के लिए बहुत बहुत बधाई आ0 अनवर भाई.....
वाह वाह आदरणीय इस सुन्दर रचना के लिए बहुत बहुत बधाई///सादर
तुम्हारी घनी जुल्फों के साए में छुपना था
कि कार्तिक मास में
असमय छाये काले पनीले
मनहूस बादलों ने ग़मगीन किया मुझे
वाह! आदरणीय अनवर साहब, बहुत सुंदर भावनात्मक रचना, बधाई स्वीकारें
ऐसे बेदर्द समय में मेरी जान
कैसे गा सकता हूँ मैं
प्यार-मुहब्बत के गान..........waaah
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