For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कैसे गाऊँ गान....

तुमसे इश्क में भीगी बातें करनी थीं 
लेकिन किसान का मायूस चेहरा 
आता रहा बार-बार सामने 

तुम्हारी घनी जुल्फों के साए में छुपना था 
कि कार्तिक मास में 
असमय छाये काले पनीले
मनहूस बादलों ने ग़मगीन किया मुझे 

तुम्हारी खनकती हंसी सुननी थी 
कि किसानो के आर्तनाद ने रोक लिया 

तुम्हे मालूम है 
कि बाज़ार 
नए नये उत्पादों से अटा-पटा है 
कि दिवाली के लिए मध्य वर्ग 
कर रहा भरपूर खरीदारी 
कितनी भीड़ है गहने जेवर की दुकानों में 
खुशियों से लबरेज़ हैं भरपेटों के चेहरे 
और ऐसे में 
उदासी में डूबे हैं मेरे आस-पास के खलिहान 
चिंता में मगन हैं मेहनतकश किसान 
दूर दूर तक नही दीखता समाधान 

ऐसे बेदर्द समय में मेरी जान 
कैसे गा सकता हूँ मैं
प्यार-मुहब्बत के गान..........

(मौलिक अप्रकाशित)

Views: 466

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by राजेश 'मृदु' on October 31, 2013 at 2:28pm

सुंदर अभिव्‍यक्ति, सही है कि जब पेट खाली हो तो इश्‍क नहीं सूझता, सादर

Comment by annapurna bajpai on October 30, 2013 at 6:12pm

क्या  बात है आ0 अनवर सुहैल जी , कितनी बढ़िया बात कही आपने अपनी रचना के मधायम से , काश !! सभी ऐसा सोच पाते । आपको बहुत बधाई इस रचना कर्म के लिए । 

Comment by Sushil.Joshi on October 29, 2013 at 10:05pm

किसानों के मर्म को बयान करती एक सुंदर अभिव्यक्ति के लिए बहुत बहुत बधाई आ0 अनवर भाई.....

Comment by विजय मिश्र on October 29, 2013 at 5:26pm
बहुत सही कहा सुहैल भाई ,बधाई
Comment by ram shiromani pathak on October 29, 2013 at 11:15am

वाह वाह  आदरणीय   इस सुन्दर रचना के लिए बहुत बहुत बधाई///सादर 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on October 29, 2013 at 10:57am

तुम्हारी घनी जुल्फों के साए में छुपना था 
कि कार्तिक मास में 
असमय छाये काले पनीले
मनहूस बादलों ने ग़मगीन किया मुझे

वाह! आदरणीय अनवर साहब, बहुत सुंदर भावनात्मक रचना, बधाई स्वीकारें

Comment by Dr Ashutosh Vajpeyee on October 29, 2013 at 10:01am

ऐसे बेदर्द समय में मेरी जान 
कैसे गा सकता हूँ मैं
प्यार-मुहब्बत के गान..........waaah

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
4 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service