वो मुझे याद करता है
वो मेरी सलामती की
दिन-रात दुआएं करता है
बिना कुछ पाने की लालसा पाले
वो सिर्फ सिर्फ देना ही जानता है
उसे खोने में सुकून मिलता है
और हद ये कि वो कोई फ़रिश्ता नही
बल्कि एक इंसान है
हसरतों, चाहतों, उम्मीदों से भरपूर...
उसे मालूम है मैंने
बसा ली है एक अलग दुनिया
उसके बगैर जीने की मैंने
सीख ली है कला...
वो मुझमें घुला-मिला है इतना
कि उसका उजला रंग और मेरा
धुंधला मटियाला स्वरुप एकरस है
मैं उसे भूलना चाहता हूँ
जबकि उसकी यादें मेरी ताकत हैं
ये एक कडवी हकीकत है
यदि वो न होता तो
मेरी आंखें तरस जातीं
खुशनुमा ख्वाब देखने के लिए
और ख्वाब के बिना कैसा जीवन...
इंसान और मशीन में यही तो फर्क है......
(मौलिक अप्रकाशित )
Comment
भावदशा सुन्दर है. प्रस्तुति को तनिक और समय मिलना था...
सादर
आ0 अनवर भाई..... भावों के सुंदर संप्रेषण के लिए हार्दिक बधाई....
आदरणीय अनवर सुहैल जी
मर्मस्पर्शी कथ्य...पर अतुकांत को निभाने में असमर्थ है यह अभिव्यक्ति इसमें तो काव्यात्मकता है ही नहीं...क्षमा कीजियेगा आदरणीय ऐसा प्रतीत हो रहा है जैसे गद्य को ही छोटे छोटे टुकड़ों में प्रस्तुत किया गया है..शायद समयाभाव के चलते यह हुआ हो! आपकी कई सुन्दर सुप्रवाहित अतुकांत पढने के बाद इस प्रस्तुति पर यह अटकाव..कारण जो भी हो पर मुझे लगता है कि यह अभिव्यक्ति अभी थोड़ा और वक़्त मांगती है..
क्षमा सहित
सादर शुभकामनाएं .
REALITY O ! REALITY HOW CRUEL YOU ARE ? WELL EXPRESSED.
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति आदरणीय बधाई स्वीकारें
सुन्दर प्रस्तुति ,,,,,,,बहुत बहुत बधाई आदरणीय ।सादर
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