उन अधखुली
ख्वाबीदा आँखों ने
बेशुमार सपने बुने
सूखी भुरभरी रेत के
घरौंदे बनाए
चांदनी के रेशों से
परदे टाँगे
सूरज की सेंक से
पकाई रोटियाँ
आँखें खोल उसने
कभी देखना न चाहा
उसकी लोलुपता
उसकी ऐठन
उसकी भूख
शायद
वो चाहती नही थी
ख्वाब में मिलावट
उसे तसल्ली है
कि उसने ख्वाब तो पूरी
इमानदारी से देखा
बेशक
वो ख्वाब में डूबने के दिन थे
उसे ख़ुशी है
कि उन ख़्वाबों के सहारे
काट लेगी वो
ज़िन्दगी के चार दिन.....
.
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
आदरणीय अनवर जी सुन्दर रचना बहुत बहुत बधाई आपको। ..सादर
सुन्दर कल्पनाशीलता, बधाई.............
उसे ख़ुशी है
कि उन ख़्वाबों के सहारे
काट लेगी वो
ज़िन्दगी के चार दिन.......... वाह वाह.... बधाई इस सुंदर प्रस्तुति हेतु आ0 अनवर भाई....
आदरणीय अनवर जी सुन्दर रचना हेतु बधाई स्वीकारे
सुन्दर रचना हेतु बधाई स्वीकारे आदरणीय
आदरणीय अनवर जी खूबसूरत रचना बधाई स्वीकारें
आ0 अनवर सुहैल जी सुंदर रचना हेतु बधाई स्वीकारें ।
sapno jaisa sapna kab hua apna
par kavi jeevan hi ha ek sapna
jag mein sabko padta ha tapna
chain use deta ha bas ek sapna aise hi achche achche sapne dekhte rahein
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