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उन अधखुली
ख्वाबीदा आँखों ने
बेशुमार सपने बुने

सूखी भुरभरी रेत के
घरौंदे बनाए

चांदनी के रेशों से
परदे टाँगे

सूरज की सेंक से
पकाई रोटियाँ

आँखें खोल उसने
कभी देखना न चाहा
उसकी लोलुपता
उसकी ऐठन
उसकी भूख

शायद
वो चाहती नही थी
ख्वाब में मिलावट
उसे तसल्ली है
कि उसने ख्वाब तो पूरी
इमानदारी से देखा

बेशक
वो ख्वाब में डूबने के दिन थे
उसे ख़ुशी है
कि उन ख़्वाबों के सहारे
काट लेगी वो
ज़िन्दगी के चार दिन.....

.

 (मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment

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Comment by ram shiromani pathak on November 10, 2013 at 8:01pm

आदरणीय अनवर जी सुन्दर रचना बहुत बहुत बधाई आपको। ..सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on November 10, 2013 at 9:49am

सुन्दर कल्पनाशीलता, बधाई.............

Comment by Sushil.Joshi on November 9, 2013 at 8:38pm

उसे ख़ुशी है
कि उन ख़्वाबों के सहारे
काट लेगी वो
ज़िन्दगी के चार दिन.......... वाह वाह....  बधाई इस सुंदर प्रस्तुति हेतु आ0 अनवर भाई....


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on November 9, 2013 at 4:56pm

आदरणीय अनवर जी सुन्दर रचना हेतु बधाई स्वीकारे 

Comment by Meena Pathak on November 9, 2013 at 4:40pm

सुन्दर रचना हेतु बधाई स्वीकारे आदरणीय 

Comment by अरुन 'अनन्त' on November 9, 2013 at 2:00pm

आदरणीय अनवर जी खूबसूरत रचना बधाई स्वीकारें

Comment by annapurna bajpai on November 9, 2013 at 1:19pm

आ0 अनवर सुहैल जी सुंदर रचना हेतु बधाई स्वीकारें । 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 8, 2013 at 12:47pm

sapno jaisa sapna kab hua apna

par kavi jeevan hi ha ek sapna

jag mein sabko  padta ha tapna

chain use deta ha bas ek sapna          aise hi achche achche sapne dekhte rahein

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