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सियाह रात के पर्दे में है निहाँ सा कुछ

1212 1122 1212 22

 

सियाह रात के पर्दे में है निहाँ सा कुछ

ज़मीं से आज उठे है धुआँ-धुआँ सा कुछ

 

ये ज़ोर शम्अ का है जो बुझी नही शब भर

गया करीब से तूफान बदगुमाँ सा कुछ

 

न जाने कौन खिरामां सफ़र में था मेरे

तमाम राह चला साथ कारवाँ सा कुछ

 

चिराग सा कभी, आतिशबजाँ लगे है गाह

वो टिमटिमाता अँधेरों में इक मकाँ सा कुछ

 

ये बदलियाँ जो हटीं चाँद भी खिला तनहा

इक अर्से बाद नज़र आया शादमाँ सा कुछ

 

निहाँ =छिपा हुआ, खिरामां =गतिमान, आतिशबजाँ =जिसके अंदर आग हो, शादमाँ =हर्षित

 

-मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by शिज्जु "शकूर" on November 9, 2013 at 5:02pm

आदरणीय सुशील जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया

Comment by Sushil.Joshi on November 9, 2013 at 12:21pm

बहुत सुंदर प्रस्तुति है आ0 शिज्जू भाई जी..... बहुत बहुत बधाई...


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Comment by शिज्जु "शकूर" on November 7, 2013 at 9:32pm

Respected Mr Gopal sir Thanks a lot for compliment 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 7, 2013 at 4:36pm

WONDERFULL. congrats.YOU REALLY PUT YOUR SOUL HERE.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on November 7, 2013 at 10:22am

आदरणीय वीनसजी आपका तहेदिल से शुक्रिया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on November 7, 2013 at 10:21am

आदरणीय गिरिराज जी हौसलाअफ्ज़ाई के लिये आपका बहुत बहुत शुक्रिया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on November 7, 2013 at 10:20am

भाई नीरज जी नवाजिशों के लिये आपका शुक्रिया

Comment by वीनस केसरी on November 7, 2013 at 12:49am

बहुत खूब भाई जी क्या कहने

शानदार


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 6, 2013 at 8:51pm

आदरणीय शिज्जू भाई , बहुत शानदार , लाजवाब और मुकम्मल गज़ल कही है !!!!! हर शे र क़ाबिले दाद है !!!!! आपको बहुत बधाई !!!!!

Comment by Neeraj Nishchal on November 6, 2013 at 6:54pm

आदरणीय सिज्जू भाई आप कि ग़ज़ल को पढ़ कर महसूस होने लगा है
कि ग़ज़ल क्या होती है सोच में पड़ गया कैसे सोच पाते हैं आप ऐसा

सियाह रात के पर्दे में है निहाँ सा कुछ

ज़मीं से आज उठे है धुआँ-धुआँ सा कुछ

ये ज़ोर शम्अ का है जो बुझी नही शब भर

गया करीब से तूफान बदगुमाँ सा कुछ

न जाने कौन खिरामां सफ़र में था मेरे

तमाम राह चला साथ कारवाँ सा कुछ

चिराग सा कभी, आतिशबजाँ लगे है गाह

वो टिमटिमाता अँधेरों में इक मकाँ सा कुछ

ये बदलियाँ जो हटीं चाँद भी खिला “तनहा”

इक अर्से बाद नज़र आया शादमाँ सा कुछ

हर एक शेर हर एक शेर से बढ़कर है
लाजवाब बहुत बहुत बधाई ............................................................................................

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