क्या कभी देखा है
छोटे - छोटे बच्चो को
कूड़ा बीनते
या फिर किसी होटल में
जूठे प्याले धोते
या फूटपाथ पर जूते सिलते
या किसी सेठ की
भव्य दूकान में
अपनी उम्र और वज़न से
ज्यादा बोझ उठाते
या श्रम करते ?
तो क्या यही सचमुच
भारत के बच्चे है,
देश के भविष्य है ?
क्या इन बच्चो के
प्यारे-प्यारे मन में
हमने कभी झाँका है ?
क्या उनके सपनो को
जग ने कभी नापा है ?
क्या वे नहीं चाहते
माटी में लोटना,
गली में दौड़ना ,
कंचे खेलना,
होटल में जाना,
सिनेमा देखना
पर उनके नाजुक पैरो में बेड़ी
क्या विधि ने डाली है
या फिर हम उनके मुजरिम है ?
काश ! ऐसा होता, ये प्यारे बच्चे
बाल श्रम अथवा
क्रूर यौन शोषण से
हर बार बचते
उनके कुछ सपने सच में बदलते
वे हर दुराग्रह से बाल बाल बचते
कोई भी कभी उनका
कर नहीं पाता
बाल भी बांका
कभी नहाने में न
बाल उनके घिसते
और बूढ़े होने से
पहले ही उनके
प्यारे उन बच्चो के
बाल नहीं पकते I
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
कविता के मर्मस्पर्शी कथ्य और शुरुवात के आधे अंश के लिए हार्दिक बधाई... अंत आते आते तक कविता का कथ्य संयत नहीं रह सका,,कुछ और समय देने की आवश्यकता महसूस हुई
सादर शुभेच्छाएं
आदरणीय सुन्दर भावाभिव्यक्ति पर हार्दिक बधाई आपको///सादर
आदरणीय गोपाल जी, आपकी इस कविता के मर्म ने भावुक कर दिया. उस पर से प्रस्तुति का समय बालदवस होने से हृदय भर आया.
भाई बृजेश जी के कहे पर ध्यान देना अतुकान्त कविता की शिल्पगत कसौटियों के प्रति सार्थक आग्रह होगा.
सादर
आदरणीय गोपाल सर ..अत्यंत भावपूर्ण रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें ..वाकई हमने कभी बच्चों के बारे में सोचा नहीं उन्हें क्या चाहिए क्या नहीं बस बाल दिवस मानते रहे ...एक शसक्त जागरूक करने वाले रचना ..सादर प्रणाम के साथ
भावपूर्ण रचना हेतु बधाई स्वीकारें आदरणीय | सादर
आदरणीय गोपाल सर बहुत अच्छी रचना आज के परिवेश मे एक सार्थक संदेश देता हुआ, बधाई आपको
आज के दिन यानि चाचा नेहरू जी के जन्म दिन के उपलक्ष्य में इस रचना की प्रस्तुति निश्चित रूप से वहाँ स्वर्ग में नेहरू जी की आँखें गीली कर गई होगी....... बाल श्रमिकों पर आधारित इस भावपूर्ण रचना के लिए हार्दिक बधाई आ0 डॉ. गोपाल जी.........
आ0 गोपाल भाई जी, बाल दशा की करूण कथा में जीवन का अभिशाप लिखा। अतिसुंदर रचना। हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर,
विषय गंभीर है! जिस गंभीरता से कविता शुरू हुई, अंत तक वो बरकरार न रह सकी.
अतुकांत कविता के शिल्प को जिस हलके ढंग से हम लेते हैं, उस पर विचार किये जाने की आवश्यकता है!
बहरहाल, इस भावाभिव्यक्ति पर आपको हार्दिक बधाई!
आदरणीय बडे भाई गोपाल जी , !!!!! भूख ,ग़रीबी की देन बाल श्रमिकों की वेदना को समझती , समझाती सुन्दर रचना के लिये आपको बहुत बधाई , साधुवाद !!!!
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online