बताई बात मिलने की अगर तूँने जमाने को
बचेगा पास मेरे क्या बताओ फिर गँवाने को
न दिल को लगने पाएगा ये गम जुदाई का
तुम्हारी याद जो होगी हमें हँसने-हँसाने को
लगी सूंघने दुनिया तेरी खुशबू हवाओं में
लिखी जब गयी चिट्ठी किताबों में छुपाने को
किया फौलाद जैसा दुखों ने पालकर तन से
खुशी एक ही काफी हमें जी भर रूलाने को
गिरे अनमोल मोती जो सुख की कड़ी टूटी
सहेजे दामनों ने हैं नयन में फिर सजाने को
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
प्रस्तुति के लिए धन्यवाद.
मेहनत करें. ग़ज़ल के मूलभूत नियमों की ओर सचेष्ट हों. .. शुभ-शुभ
सभी प्रबुद्ध जानो का हार्दिक धन्यवाद ,
आप लोगों का इसी प्रकार स्नेह मिलता रहे यही कामना है .भाई वीनस जी आपका मार्गदर्शन सरआंखों पर . भविष्य में इस प्रकार कि त्रुटि नहीं होने पायेगी . निवेदन है कि इसके लिए कोई उपयुक्त शब्द हो तो सुझाएँ .
सुंदर रचना के लिए हार्दिक बधाई ..वाकी आदरणीय वीनस जी ने स्पस्ट कर दिया है
आ. श्री लक्ष्मण जी सुन्दर रचना के लिए हार्दिक बधाई और शुभकामनायें !!
बताई बात मिलने की अगर तूँने जमाने को
बचेगा पास मेरे क्या बताओ फिर गँवाने को
सुन्दर प्रयास है भाई जी ...
ग़ज़ल के मूल नियमों पर खरी उतरने के लिए इस रचना को अभी और आंच दिखानी होगी ..
लगी सूंघने दुनिया यहाँ कुत्तों सी खुशबू को
लिखी जब गयी चिट्ठी किताबों में छुपाने को
दुनिया कुत्तों सा सूंघने लगी
घटिया उपमा देना ग़ज़ल की जबान के एतबार से ऐब मन गया है ... इससे अपनी रचनाओं को बचाईये ..
सादर
शुभकामनाएं
आदरणीय लक्ष्मण भाई , सुन्दर भावों और विचारों से सजी आपकी रचना के लिये आपको बधाई !!!!
धामी जी
कल्पना के बहुवर्णी चित्र है
ऐसे ही लिखते रहें i स्नेह i
भाव अच्छे हैं, प्रयास के लिये बधाई
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