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ग़ज़ल : क्यूँ वो अक्सर मशीन होते हैं

बह्र : २१२२ १२१२ २२

---------

याँ जो बंदे ज़हीन होते हैं

क्यूँ वो अक्सर मशीन होते हैं

 

बीतना चाहते हैं कुछ लम्हे

और हम हैं घड़ी न होते हैं

 

प्रेम के वो न टूटते धागे

जिनके रेशे महीन होते हैं

 

वन में उगने से, वन में रहने से

पेड़ खुद जंगली न होते हैं

 

उनको जिस दिन मैं देख लेता हूँ

रात सपने हसीन होते हैं

 

खट्टे मीठे घुलें कई लम्हे

यूँ नयन शर्बती न होते हैं

--------

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment

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Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on November 22, 2013 at 8:15pm

बहुत बहुत धन्यवाद Abhinav Arun जी, स्नेह बना रहे

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on November 22, 2013 at 8:15pm

बहुत बहुत शुक्रिया Dr Ashutosh Mishra जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on November 22, 2013 at 8:14pm

बहुत बहुत धन्यवाद Shijju Shakoor जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on November 22, 2013 at 8:14pm

बहुत बहुत शुक्रिया गिरिराज भंडारी जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on November 22, 2013 at 8:13pm

बहुत बहुत धन्यवाद annapurna bajpai जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on November 22, 2013 at 8:12pm

बहुत बहुत शुक्रिया डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on November 22, 2013 at 8:09pm

बहुत बहुत धन्यवाद अरुन शर्मा 'अनन्त' जी


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 19, 2013 at 8:12pm

याँ जो बंदे ज़हीन होते हैं
क्यूँ वो अक्सर मशीन होते हैं
ग़ज़ब ग़ज़ब ग़ज़ब !! .. लूट लिया आपने साहब ! बार बार मतला पढ़ रहा हूँ और आपको सोच रहा हूँ. जय-जय !

बीतना चाहते हैं कुछ लम्हे
और हम हैं घड़ी न होते हैं
अच्छा है. उस्तादी तेवर के लिए धन्यवाद, आदरणीय.
सही कहूँ तो काफ़िया का बड़ा ड्रैस्टिक प्रयोग हुआ है.. :-)))
एक समय ऐसे प्रयोग दोष माने जाते थे आज अंदाज़ माने जाते हैं .. हा हा हा हा.. बधाई हो..

प्रेम के वो न टूटते धागे
जिनके रेशे महीन होते हैं
आय-हाय ! क्या कह डाला.. और कैसे कह डाला !! .. जय हो....

वन में उगने से, वन में रहने से
पेड़ खुद जंगली न होते हैं
इस शेर की उड़ान और तहज़ीब बस लाज़वाब है, धर्मेन्द्र भाई. पेड़ को साक्ष्य बना कर आपने कितना कुछ कह दिया ! मैं आपके इस शेर को अपने पास रख रहा हूँ और बकायदा कोट किया करूँगा. आजके समाज और लिहाज़ में ये शेर बहुत मौजूं है. बधाई बधाई बधाई.. .

उनको जिस दिन मैं देख लेता हूँ
रात सपने हसीन होते हैं
:-)))
पहाड़ वैसे सबको सूट नहीं करते

खट्टे मीठे घुलें कई लम्हे
यूँ नयन शर्बती न होते हैं
उम्दा कहन और सुन्दर प्रस्तुति के लिए दिल से बधाई स्वीकारें भाईजी..

शुभ-शुभ

Comment by Saarthi Baidyanath on November 19, 2013 at 5:15pm

उनको जिस दिन मैं देख लेता हूँ

रात सपने हसीन होते हैं.....बहुत खूब :)

Comment by Nilesh Shevgaonkar on November 19, 2013 at 2:56pm

सुंदर ..बधाई 

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