बह्र : २१२२ १२१२ २२
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याँ जो बंदे ज़हीन होते हैं
क्यूँ वो अक्सर मशीन होते हैं
बीतना चाहते हैं कुछ लम्हे
और हम हैं घड़ी न होते हैं
प्रेम के वो न टूटते धागे
जिनके रेशे महीन होते हैं
वन में उगने से, वन में रहने से
पेड़ खुद जंगली न होते हैं
उनको जिस दिन मैं देख लेता हूँ
रात सपने हसीन होते हैं
खट्टे मीठे घुलें कई लम्हे
यूँ नयन शर्बती न होते हैं
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(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
बहुत बहुत धन्यवाद Abhinav Arun जी, स्नेह बना रहे
बहुत बहुत शुक्रिया Dr Ashutosh Mishra जी
बहुत बहुत धन्यवाद Shijju Shakoor जी
बहुत बहुत शुक्रिया गिरिराज भंडारी जी
बहुत बहुत धन्यवाद annapurna bajpai जी
बहुत बहुत शुक्रिया डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी
बहुत बहुत धन्यवाद अरुन शर्मा 'अनन्त' जी
याँ जो बंदे ज़हीन होते हैं
क्यूँ वो अक्सर मशीन होते हैं
ग़ज़ब ग़ज़ब ग़ज़ब !! .. लूट लिया आपने साहब ! बार बार मतला पढ़ रहा हूँ और आपको सोच रहा हूँ. जय-जय !
बीतना चाहते हैं कुछ लम्हे
और हम हैं घड़ी न होते हैं
अच्छा है. उस्तादी तेवर के लिए धन्यवाद, आदरणीय.
सही कहूँ तो काफ़िया का बड़ा ड्रैस्टिक प्रयोग हुआ है.. :-)))
एक समय ऐसे प्रयोग दोष माने जाते थे आज अंदाज़ माने जाते हैं .. हा हा हा हा.. बधाई हो..
प्रेम के वो न टूटते धागे
जिनके रेशे महीन होते हैं
आय-हाय ! क्या कह डाला.. और कैसे कह डाला !! .. जय हो....
वन में उगने से, वन में रहने से
पेड़ खुद जंगली न होते हैं
इस शेर की उड़ान और तहज़ीब बस लाज़वाब है, धर्मेन्द्र भाई. पेड़ को साक्ष्य बना कर आपने कितना कुछ कह दिया ! मैं आपके इस शेर को अपने पास रख रहा हूँ और बकायदा कोट किया करूँगा. आजके समाज और लिहाज़ में ये शेर बहुत मौजूं है. बधाई बधाई बधाई.. .
उनको जिस दिन मैं देख लेता हूँ
रात सपने हसीन होते हैं
:-)))
पहाड़ वैसे सबको सूट नहीं करते
खट्टे मीठे घुलें कई लम्हे
यूँ नयन शर्बती न होते हैं
उम्दा कहन और सुन्दर प्रस्तुति के लिए दिल से बधाई स्वीकारें भाईजी..
शुभ-शुभ
उनको जिस दिन मैं देख लेता हूँ
रात सपने हसीन होते हैं.....बहुत खूब :)
सुंदर ..बधाई
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