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कह देना पीहर से बढ़कर है मेरी ससुराल सखी--(गीत )

गाँव पँहुचने पर मैय्या जब पूछेगी मेरा हाल सखी

कह देना पीहर से बढ़कर है मेरी ससुराल सखी

मेरी  चिरैया कितना उड़ती

पूछे जब उन आँखों से 

पलक ना झपके उत्तर ढूंढें  

तब तू जाना टाल सखी

कह देना पीहर से बढ़कर है मेरी ससुराल सखी

पूछेगी फिर बेला चमेली

कितनी चढ़ी ऊँचाई  पर

इस घर में नही कोई सीढ़ी 

छोटी है दीवाल सखी  

कह देना पीहर से बढ़कर है मेरी ससुराल सखी

जब वो हंसती कितनी झरती  

मुक्तक मणियाँ मुखड़े से  

समझाना यहाँ मेरी झोली     

अब है मालामाल सखी  

कह देना पीहर से बढ़कर है मेरी ससुराल सखी

पूछेगी उसकी अँखियों का

कजरा अब कितना खिलता  

खोल के तू अपने हाथों से

देना ये रुमाल सखी

कह देना पीहर से बढ़कर है मेरी ससुराल सखी 

सुनके मेरी बातें अगर जो        

मैय्या का उर भर आये    

तुझको कसम है इस बहना की

लेना तू संभाल सखी

कह देना पीहर से बढ़कर है मेरी ससुराल सखी

********************************* 

मौलिक एवं अप्रकाशित 

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Comment by Dr Ashutosh Mishra on November 19, 2013 at 6:13pm

आदरणीया सचमुच भावुक कर देने वाली रचना ..बेटियां ही वाकई में हर हाल में अपना फर्ज निभाती हैं ,,सुंदर शब्द सुसज्जित भाव ..सीधे दिल में उतरने वाले इस बेहतरीन रचना हेतु तहे दिल बधाई स्वीकार करें 

Comment by Meena Pathak on November 19, 2013 at 5:29pm

नायिका के अंतर का दर्द छलक कर बाहर आ गया है ............... यही तो विडंबना है .. ज्यादा कुछ नही कहूँगी बस्स  पल्लू से नम आँखे पोंछ रहीं हूँ .. अंतर्मन को छूती हुई रचना हेतु बहुत बहुत बधाई आप को आदरणीया !!

Comment by वेदिका on November 19, 2013 at 2:03pm

बाहर से हँसता हुआ और अंदर से रोता हुआ, मार्मिक गीत! 

एक अबोला पक्ष जो नहीं बोलना चाहती है कोई भी लड़की अपनी तथाकथित परंपरा का निर्वाह करते हुये! इस कसक को आपने गीत रूप देकर कई लड़कियों की मूक वेदना जाहिर की है! बधाई आदरणीया!    

Comment by Arun Sri on November 19, 2013 at 1:13pm

बचपन में एक गीत सुना था ! एक सैनिक दम तोड़ते हुए अपने साथी से कहता है -   "साथी जाकर घर मत कहना" ! गला रुंध जाता था उसे गुनगुनाते हुए ! आँखें नम हो जाती थीं सुनते हुए ! अगर मैं आज भी बच्चा होता तो ये गीत पढकर उसी स्थिति में होता ! अत्यंत मार्मिक भाव पक्ष !

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 19, 2013 at 12:43pm

भारतीय संस्कृति की यह अनुपम देन है कि बहुत से परिवारों में आज भी बेटियाँ अपने पीहर में ससुराल में खुश रहने 

की बात बताते हुए अपने दुखड़े नहीं रोती और अपने माँ बाप को दुखी नहीं करना चाहती | यहाँ तक कि अगर पता भी 

लग जावे तो कहती है - मै ससुराल खडी गयी हूँ, आड़ी (मरने पर लेटी हुई) ही जाउंगी |

बहुत सुन्दर और यथार्थ रचना के लिए हार्दिक बधाई आद राजेश कुमारी जी 

Comment by CHANDRA SHEKHAR PANDEY on November 19, 2013 at 12:37pm
बस आँखों में आंसू भर आये
रुमाल टटोल रहा हूँ
संयोग से पाकेट में नही है
बहुत बधाई
मर्म को छूते गीत के लिए
Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on November 19, 2013 at 12:34pm

वाह वाह आदरणीया राजेश कुमारी जी

बहुत सुन्दर ................सादर बधाई स्वीकारिये

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