कभी रोटी, कभी कपड़े के लिए गिड़गिड़ाना किस को कहते हैं
किसी अनाथ बच्चे से पूछो रोना किस को कहते हैं
कभी उसकी जगह अपने को रखो फिर जान जाओगे
कि दुनिया भर का दुःख दिल मे समेटना किस को कहते हैं
उसकी आँखें, उसके चेहरे को एक दिन घूर के देखो
मगर ये मत पूछना कि वीराना किसको कहते हैं ...
तुम्हारा दिल कभी छोड़े अगर दौलत कि खुमारी को
तो तुम्हें मालूम हो जाएगा कि गरीबी किसको कहते हैं ....
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
सही अर्थ और भाव से भरी इस रचना पर आपको सादर बधाई
आ0 गोपाल नारायण सर.... उत्साह बढ़ाने के लिए धन्यवाद अपना आशीर्वचन ऐसे ही बनाए रखें... मैंने गौर करा आप जो कह रहे हैं वो बिलकुल सत्य है .... मे कोशिश करूंगा... धन्यवाद ... सादर
आ0 अरुण शर्मा जी आपका धन्यवाद ... मे आगे कोशिश करूंगा की आपको मेरी टूटी फूटी रचना पसंद आए .... बहुत बहुत आभार ...
आ0 रमेश जी .... कम से कम मैं तो बहुत सीखता हूँ आप सभी की बातों को अवश्य ध्यान मे रखता हूँ... क्यूंकी लिखना मुझे अच्छा लगता है मगर कैसे लिखूँ ये नहीं जानता क्या विधा हो ये नहीं जानता .... जैसा भी लिखता हूँ बस लिख देता हूँ.... आप सभी की बातों और सीख को ध्यान मे रखते हुये अगर कुछ लिख पाउ तो आप सभी का आशीर्वाद ही होगा...
आपको बहुत बहुत धन्यवाद ...
आ0 अन्नपूर्णा जी, आ0 शिजू जी, आ0 जितेंद्र जी, आ0 विजय जी आप सभी का बहुत बहुत आभार उत्साह बढ़ाने के लिए...
आदरणीय इस प्रस्तुति के लिये बधाई । इस मंच के सम्मानीय गुरूजनो के सुझाव के अनुरूप अनवरत प्रयास हमे करते रहना चाहिये ।
आदरणीय प्रयास अच्छा है मेरे मन का पाठक संतुष्ट नहीं हो सका
गरीबी में जीवन की वास्तविकता को स्पष्ट करती हुयी रचना पर बधाई स्वीकारें आदरणीय आमोद जी
भूख दुख दर्द और गरीबी का अच्छा चित्रण है i आमोद जी थोडा लय बेहतर होती तो मजा आ जाता i
फिर भी आपकी कोशिश अच्छी है i हमें आपसे और अच्छे की उम्मीद है i आप कर सकते है i
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