For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल -निलेश 'नूर'-बात जो तुम से निभाई न गई

२१२२, ११२२, २२/ ११२   

.

बात जो तुम से निभाई न गई,
बस वही हम से भुलाई न गई.
....

वो नई रोज़ बना ले दुनियाँ,  
हम से किस्मत भी बनाई न गई.

....

थी दरो दिल पे छपी इक तस्वीर,
जल गया जिस्म, मिटाई न गई.

....
बस मेरे हक़ में बयाँ देना था, 
उन से आवाज़ उठाई न गई.

....

ख्व़ाब था दिल से मिला लें हम दिल,
आँख से आँख मिलाई न गई.  

....

हम गले मिलते भला किससे, कहो!
हमसे तो ईद मनाई न गई.

....

साँस थी, जान थी बाकी मुझ में,
दिल न था नब्ज़ भी पाई न गई.   

............................................
मौलिक व अप्रकाशित 
निलेश 'नूर'

Views: 661

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Nilesh Shevgaonkar on December 2, 2013 at 2:32pm

शुक्रिया आदरणीय सौरभ सर ..


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 1, 2013 at 6:51pm

आदरणीय नीलेशजी, आपको इस कमाल ग़ज़ल के लिए दिल से बधाई. पाठकों के सुझावों पर अमल कर आपने इसके अश’आर को मायनेदारबना लिया है.
शुभ-शुभ

Comment by Nilesh Shevgaonkar on November 24, 2013 at 11:40am

शुक्रिया, मेहरबानी, इनायत ... आप सभी का आभार . आदरणीय राणा प्रताप जी, आप के सुझाए अनुसार बदलाव कर लिया है .... मार्गदर्शन हेतु शुक्रिया    


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on November 24, 2013 at 10:11am

बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल हुई है....ये दो शेर बहुत ही बेहतरीन होते और ग़ज़ल के सबसे अच्छे शेर होते पर मुई ये बिंदी .......

 

थी हया आँख में या थे वो ख़फ़ा, 
उन से पलकें ही उठाई न गई.

ख्व़ाब था दिल से मिला लें हम दिल,
याँ तो नज़रें ही मिलाई न गई.  

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 24, 2013 at 6:41am

वो नई रोज़ बना ले दुनियाँ,  
हम से किस्मत भी बनाई न गई.॥ बहुत खूब दर्द उकेरा है आपने

बधाई

Comment by Ram Awadh VIshwakarma on November 23, 2013 at 8:21pm

 नूर साहब उम्दा गजल कहने के लिये बहुत बहुत बधार्इ 

Comment by umesh katara on November 23, 2013 at 8:52am

शानदार प्रस्तुति है वाह्ह्ह्ह्ह्ह
हम गले मिलते भला किससे कहो
हमसे तो ईद मनाई न गयी
वाह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्

Comment by विजय मिश्र on November 22, 2013 at 5:40pm
बहुत खूब !!! शुक्रिया
Comment by Sarita Bhatia on November 22, 2013 at 5:33pm

आदरणीय निलेश जी बहुत खूब गजल कही आपने 

साँस थी, जान थी बाकी मुझ में,
दिल न था नब्ज़ भी पाई न गई.  

वाह क्या बात 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on November 22, 2013 at 2:49pm

आदरणीय निलेश जी ..बेहतरीन ग़ज़ल हर शेर उम्दा..मेरी तरफ से ढेरों बधाई ..सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ कर तरक्की जो सभा में बोलता है बाँध पाँवो को वही छिप रोकता है।। * देवता जिस को…See More
22 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
yesterday
Sushil Sarna posted blog posts
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Nov 5
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Nov 5

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Nov 2
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Nov 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Oct 31
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Oct 31
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Oct 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service