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पिला देती अगर साकी तो मैं भी बोल देता सच
हलक से गर उतर जाती तो मैं भी बोल देता सच
हसीं नगमे, हसीं जलवे, हसीं महफ़िल हसीनो की
हँसी रुसवा न गर होती तो मैं भी बोल देता सच
कहें शायर घनी काली घटाएं इन की जुल्फों को
न उनकी नींद गर उडती तो मैं भी बोल देता सच
बड़ी दिलकश हसीं कातिल चमकता चाँद सब कहते
हंसी गर सच को सह पाती तो मैं भी बोल देता सच
कतल होने मे गर आये मजा समझो की उल्फत है
अगर धड़कन नहीं बढ़ती तो मैं भी बोल देता सच
वो कातिल है छुपा बैठा जमाने की निगाहों से
मेरे दिल में वो न बसती तो मैं भी बोल देता सच
मौलिक व अप्रकाशित
डॉ आशुतोष मिश्र
Comment
आदरणीय आशुतोष जी बहुत खूब की क्या कहने बहुत ही दिलकश ग़ज़ल हुई है और बेहतर हो सकती थी. खैर उम्दा प्रयास है बहुत बहुत बधाई स्वीकारें.
गुस्ताखी माफ़ के साथ आदरणीय.
निकलती आह भीतर से ग़ज़ल ये बोल जाती सच.
जरा कोशिश अगर करते तो मिश्री घोल जाती सच.
वो कातिल है छुपा बैठा जमाने की निगाहों से
मेरे दिल में वो न बसती तो मैं भी बोल देता सच (न को वो से पहले कर लें)
वाह वाह वाह क्या बात है जनाब बेहतरीन ग़ज़ल कही है आपने दिली दाद कुबूलें
आदरणीय अखिलेश जी ..उत्साह वर्धन के लिए तहे दिल आभार ..सादर
आदरणीया राजेश जी ..हौसला अफजाई और परमर्श देने के लिए हार्दिक बधाई....आप सभी बिद्वत जनो से सतत मार्गदर्शन की आकांक्षा के साथ ..सादर
आदरणीय गिरिराज भाईसाब ..आपके और आदरणीया राजेश के मशविरे पर अमल करते हुए परवर्तन के लिए एडमिन महोदय को निवेदन करूंगा ..मेरी त्रुटी की तरफ ध्यान दिलाकर उचित मशविरा देने के लिए हार्दिक आभार ..सादर
आदरणीय निलेश जी ..आपके परामर्श के बाद मुझे एक और नयी जानकारी मिली ..आपके इस अमूल्य सुझाव का भविष्य में मैं सदैव अनुकरण करूंगा ..मशविरे के लिए तहे दिल धन्यवाद ..भविष्य में भी मेरी हर गलती के बिषय में आप सभी बिद्वत जन मुझे मशविरा अवश्य देवे ताकी मैं त्रुटिहीन ग़ज़ल लिख सकूं ..सादर
आदरणीय शिज्जू जी ..मुझे ध्यान तो नहीं आ रहा पर मैंने कुछ ग़ज़लें ऐसी भी पढी है जिसको पढने से मुझे लगा की साकी शब्द महिला के लिए प्रयोग किया गया है ..मैं और तहकीकात करूंगा ..एक महत्वपूर्ण बिंदु की और ध्यान दिलाने के लिए आपको हार्दिक धन्यवाद ..सादर
आदरणीय नीरज जी , हौसला अफजाई के लिए शुक्रिया
खूबसूरत गज़ल की बधाई आशुतोष भाई ।
पिला देती अगर साकी -----करें तो मसला हल हो जाएगा आपका काफिया ई ही रहेगा ,आदरणीय गिरिराज जी ने भी काफी हद तक सही कहा है किन्तु पिला शुरू में करने से ज्यादा स्पष्टता आएगी ....कुछ नहीं बस दो शब्दों का हेर फेर ...और पूरी ग़ज़ल सध जायेगी ..बहुत सुन्दर दिलकश ग़ज़ल दी है आपने ओ बी ओ को दिली दाद कबूलें डॉ आशुतोष जी
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