फाइलातुन फाइलातुन फाइलुन
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धीरे- धीरे सब हुनर दिखने लगा।
उसमें कितना है जहर दिखने लगा।
आँख में कैसी खराबी आ गर्इ,
राहजन ही राहबर दिखने लगा।
लाख डींगे मारिये बेषक मगर,
आप के चेहरे से डर दिखने लगा।
जो दवायें दी थीं चारागर ने कल,
उन दवाओं का असर दिखने लगा।
जो कभी झुकता नहीं था दोस्तो
अब वही सर पाँव पर दिखने लगा।
जानवर तो जानवर हैं छोडि़ये,
आदमी भी जानवर दिखने लगा।
चलते-चलते पाँव बोझिल हो गये,
है बहुत मुषिकल सफर दिखने लगा।
जबसे आया है यहाँ पर जलजला,
तबसे बेरौनक शहर दिखने लगा।
दोस्तो पीने के पानी के लिये,
एक दिन होगा गदर दिखने लगा।
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
सशक्त और संदेशपरक ग़ज़ल के लिए बहुत बधाई आ/ राम शिरोमणि जी
आँख में कैसी खराबी आ गर्इ,
राहजन ही राहबर दिखने लगा।
जानवर तो जानवर हैं छोडि़ये,
आदमी भी जानवर दिखने लगा।
उम्दा गज़ल के लिए अदरणीय राम अवध जी बहुत बहुत बधाई..
चूंकि मै नया हूँ इस लिए
"लाख डींगे मारिये बेशक मगर,
आप के चेहरे से डर दिखने लगा।
मिसरा ए सानी में मात्रा को गिनने मे मुश्किल हो रही है क्या हम चेहरे को 2,2 मान सकते है (हम तो इसे 2 1 2 या 1 1 2 मानते थे ) कृपया मार्गदर्शन करें ताकि मुझे भविष्य मे समझने मे आसानी हो वरना फिर चेहरे के पर्यवाची शब्दों का प्रयोग करना पड़ेगा ।
विश्वकर्मा जी
आपकी ग़ज़ल पसंद आयी
कुछ टाइप की त्रुटियाँ है i ग़ज़ल के लिए बधाई i
वाह वाह , हर शेर लाजवाब , पूरी गज़ल बेमिसाल !!! आदरणीय राम अवध भाई ढेरों दाद स्वीकार करें !!!! क्या बात है !!!
धीरे- धीरे सब हुनर दिखने लगा।
उसमें कितना है जहर दिखने लगा।
आँख में कैसी खराबी आ गर्इ,
राहजन ही राहबर दिखने लगा।
लाख डींगे मारिये बेषक मगर,
आप के चेहरे से डर दिखने लगा। ------------- तीनो शे र लाजवाब कहे हैं !!!!!!
आदरणीय राम अवध सर आपकी ग़ज़ल तो निस्संदेह बेहतरीन उसके लिये दाद तो बनता है दिली दाद कुबूल करें
//धीरे- धीरे सब हुनर दिखने लगा
उसमें कितना है जहर दिखने लग
जबसे आया है यहाँ पर जलजला
तबसे बेरौनक शहर दिखने लगा//
लेकिन इन दो अशआर में शहर और ज़हर की तक्ती जिस प्रकार की गई है उससे इन शब्दों के वज्न पर दुबारा चर्चा शुरू हो सकती है
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