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गर्म हवा है खूब यहाँ की ( गज़ल ) गिरिराज भंडारी

गर्म हवा है खूब यहाँ की

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2 2  2 2  2 2   2 2

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जो भी मुझसे सम्बंधित है

सुख पाने से वो वंचित है

 

मौन यहाँ है सबसे अच्छा

कुछ कहना अब प्रतिबंधित है

 

मै अधिकार कहाँ से पाऊँ  

कुछ विशेष को आबंटित है

 

गर्म हवा है खूब यहाँ की

आज परिन्दा आतंकित हैं

 

अभी छाँव में धूप है शामिल

सारे सुखों मे दुख किंचित है

 

हरदम अड़चन मुझ तक आई

क्या ? कठिनाई नामांकित है

 

ये कैसी दुनिया है भाई

हर माथा सिकुड़ा, चिंतित है 

मधु भावों से आप सभी के

अब मेरा तन मन सिंचित है

 

***************************** 

मौलिक एवँ अप्रकाशित ( संशोधित )

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Comment by शिज्जु "शकूर" on November 30, 2013 at 8:11pm

आदरणीय गिरिराज सर सबसे पहले इस बह्र पे ग़ज़ल के प्रयासों पर बधाई स्वीकार करें

//जो भी मुझसे सम्बंधित है

दुख सुख पाने अनुबंधित है// बेहतरीन मतला हुआ है दाद कुबूल फरमायें

आदरणीय गिरिराज सर कृपया इन मतलों की तक्ती करके देखें

//यहाँ मौन है सबसे अच्छा//

//कुछ विशेष को आबंटित है//

//हाँ, धूप में छाँव है शामिल

सभी सुखों मे दुख किंचित है//

आपने मतले में सम्बंधित और अनुबंधित काफिया लिया है, ज़रा देखें कहीं ग़ज़ल में दोष तो नही आ गया।

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on November 30, 2013 at 8:02pm

आदरणीय गिरिराज सर जी बेहतरीन भाव भरे हैं आपने इस ग़ज़ल में

किन्तु प्रवाह की दृष्टि से कुछ सुधार किये हैं देखिये

जो भी मुझसे सम्बंधित है

दुख सुख पाने अनुबंधित है...........बेहतरीन मतला कहा है आपने वाह

 

यहाँ मौन है सबसे अच्छा

कुछ कहना अब प्रतिबन्धित है...............है मौन यहाँ सबसे अच्छा ............

 

मै अधिकार कहाँ से पाऊँ  

कुछ विशेष को आबंटित है......................अधिकार कहाँ से पाऊं में ..............वो खासों को आवंटित है

 

गर्म हवा है खूब यहाँ की.................है खूब यहाँ की गर्म हवा

आज परिन्दा आतंकित हैं...............हर पंछी जो आतंकित है

 

हाँ, धूप में छाँव है शामिल................हाँ धूप में छाँव भी है शामिल .

सभी सुखों मे दुख किंचित है....................हर सुख में कुछ दुःख किंचित है

 

हरदम अड़चन मुझ तक आई

क्या ? कठिनाई नामांकित है ......................वाह क्या बात है

 

मधु भावों से आप सभी के................आप सभी के मधु भावों से

मेरा तन मन अब सिंचित है...............तन मन मेरा अब सिंचित है

 

ये मेरे सुझाव मात्र हैं हो सकता है मैं गलत भी होऊं ..................अन्यथा न लेते हुए मुझे अनुज समझ क्षमाकरेंगे 

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