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***बुजुर्ग को सुनाते हैं …..***

बुजुर्ग को सुनाते हैं …..

हाँ
मानता हूँ
मेरा जिस्म धीरे धीरे
अस्त होते सूरज की तरह
अपना अस्तित्व खोने लगा है
मेरी आँखों की रोशनी भी
धीरे धीरे कम हो रही है
अब कंपकपाते हाथों में
चाय का कप भी थरथराता है
जिनको मैं अपने कंधों पर
उठा कर सबसे मिलवाने में
फक्र महसूस करता था
वही अब मुझे किसी से मिलवाने में
परहेज़ करते हैं
शायद मैं बुजुर्ग
नहीं नहीं बूढा बुजुर्ग हो गया हूँ
मैं अब वक्त बेवक्त की चीज़ हो गया हूँ
परिवार का एक ऐसा मोहरा हूँ
जिसे जब भी जरूरत पडी
शादी,त्यौहार में
बढ़िया लिबास में सजा कर
मेहमानों के सामने रख दिया
फिर अवसर निकलते ही
पुराने अखबार की तरह
घर के किसी कौने में
बिठा दिया
कांपते हाथों से अगर
सब्जी कमीज़ पर गिर पड़े
बावजूद लाख कोशिशों के अगर
अपनी लघु शंका नियंत्रित न हो पाए
बात करते करते
थूक मुंह से कपड़ों पे गिरने लगे
किसी की बात सुन पाने में असमर्थता हो
बहुत शोर होता है घर में
घर के अपनों से बैगानों में
सब को अपने दर्द नज़र आते हैं
मगर इन हाथों में कसमसाते
अपनों के रिश्तों को
एक बजुर्ग की आँख से
झर झर बहते यादों के
झरने नज़र नहीं आते
सूखी टहनियों से आती
सूर्य की रश्मियाँ उन्हें अब खलती हैं
मगर इस बजुर्ग वृक्ष की छाया में
खेले बचपन के पल उन्हें याद नहीं आते
बहुत रोते हैं पछताते हैं
जब घर की रौनक ये बुजुर्ग
दुनिया से चले जाते हैं
चलते हैं जब ज़िन्दगी तपती राहों पर
तब सूखी टहनियों का
मोल समझ जाते हैं
फिर अपना दर्द
फ्रेम में जड़े
बुजुर्ग को सुनाते हैं, बुजुर्ग को सुनाते हैं ……

सुशील सरना

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 686

Comment

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Comment by Sushil Sarna on December 2, 2013 at 5:26pm

a.Coontee mukerji rachna ke marm pr aapkee skaratmak pratikriya ka haardik aabhaar

Comment by coontee mukerji on December 2, 2013 at 5:21pm

जीवन का सत्य....समझ जाना ही बहुत है

जब घर की रौनक ये बुजुर्ग
दुनिया से चले जाते हैं
चलते हैं जब ज़िन्दगी तपती राहों पर
तब सूखी टहनियों का
मोल समझ जाते हैं
फिर अपना दर्द
फ्रेम में जड़े
बुजुर्ग को सुनाते हैं, बुजुर्ग को सुनाते हैं..........साधुवाद

Comment by Sushil Sarna on December 2, 2013 at 5:16pm

aa.Gitika 'vedika' jee rachna ke marm pr aapkee saarthak pratikriya ka haardik aabhaar

Comment by Sushil Sarna on December 2, 2013 at 5:15pm

aa.Meena Pathak jee rachna par aapkee gahan pratikriya ka haardik aabhaar

Comment by Sushil Sarna on December 2, 2013 at 5:14pm

aa.Arun Sharma 'Anant' jee rachna pr aapkee prashansaatmak saarthak pratikriya ka haardik aabhaar

Comment by वेदिका on December 2, 2013 at 1:57pm

वेदना मे बुरी तरह डुबोया सच्चा चित्रण हुआ है! 

बधाई तो नही दे सकती, किन्तु आपकी लेखनी को नमन करती हूँ!

Comment by Meena Pathak on December 2, 2013 at 1:53pm

निःशब्द हूँ पढ़ कर 

Comment by अरुन 'अनन्त' on December 2, 2013 at 1:45pm

उफ्फ !!! आदरणीय शब्द नहीं हैं मेरे पास कुछ भी कहने के लिए आपसे जिस वेदना को शब्द दिए हैं. आपकी लेखनी को नमन आपको बहुत बहुत बधाई

Comment by Sushil Sarna on December 2, 2013 at 12:36pm

aa.Rajesh Mridu jee aapne rachna ka marm jaan apnee pratikriya vyakt kee yahee meree rachna kee saarthakta hai, aapka haardik aabhaar

Comment by राजेश 'मृदु' on December 2, 2013 at 12:01pm

हद से गुजरती पीढि़यां इस बात पर सोचती तक नहीं । इस मुद्दे को छूने एवं परत-दर-परत इस पीड़ा का सुंदर शब्‍दांकन हेतु आपको बधाई, सादर

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