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मौन हवाएं

सर्द गर्म और सीली सीली

आते जाते

आम जनों की

तबियत ढीली  

सन्नाटों की चीख

अनवरत अनुशासित है

लेन देन की बात करे हैं

सारे उल्लू

चन्दा का उजियारा

ढूँढे

जल भर चुल्लू

भूतों और पिशाचों से

बस ये शासित है

दहशत वहशत

खुली सड़क पर

खुल के झूमें

डाकू और लुटेरे

क्षण क्षण

दामन चूमें

शबनम का कतरा

त्रण त्रण में आभासित है

अन्धकार को आज करूँ

लो परिभाषित मैं

 

संदीप पटेल “दीप”

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 583

Comment

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Comment by अरुन 'अनन्त' on December 2, 2013 at 1:52pm

आदरणीय संदीप भाई साहब बहुत ही सुन्दर कटाक्ष बधाई आपको

Comment by राजेश 'मृदु' on December 2, 2013 at 12:04pm

आदरणीय.......क्‍या हुआ ?????

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on December 1, 2013 at 9:44pm

बधाई संदीप भाई इस गीत के लिए ।

कृपया ध्यान दे...

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