For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

माँ जैसी प्यारी है मौत (गीत) अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव

ज़िन्दगी तू मौत से  पीछा छुड़ा न पाएगी।                                                                  

उम्र  बढ़ती जाएगी , करीब  आती जाएगी।।                                                                             

     

ज़िन्दगी सफर है और, मुक्ति है मंजि़ल तेरी।                                                                   

मुक्ति जब करीब हो, तो  मौत मुस्कराएगी।।                                                                          

 

मौत एक माँ की तरह, फर्ज़ भी निभाएगी।                                                             

प्यार भरी थपकियों से,  गोद में सुलाएगी।।                                                                                           

 

जब मधुर आवाज़ में, वो लोरी गुनगुनाएगी।                                                               

नींद गहरी और गहरी, और  होती जाएगी।।                                                                           

     

माँ को सबका ध्यान है, सभी पे मेहरबान है।            

मुक्ति सारी झंझटों से, मौत ही  दिलाएगी।।                                            

 

भेद भाव करती नहीं, सब को चाहती है माँ।                           

जब समय आ जाएगा, बिना बुलाए आएगी।।                                            

 

हर जनम  में माँ , तू एक बार  मिलती है।               

स्वागत् है इस जनम में, तू कभी तो आएगी।।

********************************

-  अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव, धमतरी (छत्तीसगढ़)

 

( मौलिक एवं अप्रकाशित )   

Views: 982

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on December 3, 2013 at 5:20pm

आदरणीय भाई गोपाल नारायणजी, आप जैसे गुणीजनों से उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया पाकर मैं धन्य हुआ । हौसला बढ़ाने के लिए मेरा  हार्दिक धन्यवाद स्वीकार करें गोपाल भाई। 

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on December 3, 2013 at 5:08pm

लक्ष्मण भाई, हार्दिक धन्यवाद  इस रचना को दिल से पसंद करने के लिए

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on December 3, 2013 at 5:05pm

विजय भाई , क्या कहूँ  ? मेरी रचना  /// किसी संत के दर्शन से कम नहीं ///  कह कर आपने  कुछ ज़्यादा ही तारीफ कर दी ॥ रचना को हृदय से पसंद करने, उसे आत्मसात करने और मेरा  हौसला बढ़ाने के लिए हार्दिक धन्यवाद ॥

Comment by वेदिका on December 3, 2013 at 5:00pm

 मृत्यु को समर्पित सुंदर कृति!

हार्दिक बधाई आ० अखिलेश जी!

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on December 3, 2013 at 4:48pm

हार्दिक धन्यवाद राम  भाई इस रचना को दिल से पसंद करने के लिए

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on December 3, 2013 at 4:44pm

आदरणीया कुंतीजी आपका हार्दिक धन्यवाद मेरी इस रचना को मान देने और हृदय से स्वीकार करने के लिए॥इस कृति को  बार-बार पढ़ने लायक बताकर आपने मेरा भी हौसला बढ़ाया, .. आभार।

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on December 3, 2013 at 4:32pm

इस रचना को दिल से पसंद करने के लिए हार्दिक धन्यवाद छोटे भाई कपीश एवं गिरिराज ।  

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 3, 2013 at 4:17pm

अखिलेश जी

मौत में तसव्वुरे माँ  i अद्भुत ख्याल है i

आपका निर्वहन भी कमाल का  है i

मेरी बधाइयाँ  i

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 3, 2013 at 12:13pm

अवश्यम्भावी  मृत्यु की सत्यता के विषय में बहुत ही सही बात कही है आपने |" माँ जैसी प्यारी है  मौत"

हार्दिक बधाई

Comment by विजय मिश्र on December 3, 2013 at 12:04pm
मन को शिथिल और शांत करने वाले उत्तम और यथार्थपरक भावों से अलंकृत अनुपम रचना ,मृत्यु का मुक्तिरूप और माँ के तुल्य मान देना किसी संत के दर्शन से कम नहीं . साधुवाद अखिलेशजी .

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Jaihind Raipuri is now a member of Open Books Online
3 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Ashok Kumar Raktale's blog post ठहरा यह जीवन
"आदरणीय अशोक भाईजी,आपकी गीत-प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाइयाँ  एक एकाकी-जीवन का बहुत ही मार्मिक…"
7 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहे
"धन्यवाद आ. रवि जी "
8 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"स्वागत है आ. रवि जी "
8 hours ago
Ravi Shukla commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"आदरणीय नीलेश जी जुलाई में इंदौर आ रहा हूँ मिलत है फिर ।  "
11 hours ago
Ravi Shukla commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)
"      आदरणीय अजय जी ग़ज़ल के प्रयास केलिये आपको बधाई देता हूँ । ऐसा प्रतीत हो रहा है…"
11 hours ago
Ravi Shukla commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहे
"आदरीणीय नीलेश जी तरही मिसरे पर मुशाइरे के बाद एक और गजल क साथ उपस्थिति पर आपको बहुत बहुत मुबारक बाद…"
12 hours ago
Nilesh Shevgaonkar posted blog posts
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है)
"सोलह गाफ की मात्रिक बहर में निबद्ध आपकी प्रस्तुति के कई शेर अच्छे हुए हैं, आदरणीय अजय अजेय जी.…"
yesterday
Nilesh Shevgaonkar commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)
"आ. अजय जी,क़ाफ़िया उन्मत्त तो सुना था उन्मत्ते पहली बार देखा...तत्ते का भी अर्थ मुझे नहीं पता..उतना…"
yesterday
अजय गुप्ता 'अजेय posted a blog post

ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)

लोग हुए उन्मत्ते हैं बिना आग ही तत्ते हैंगड्डी में सब सत्ते हैं बड़े अनोखे पत्ते हैंउतना तो सामान…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post गजल - जा तुझे इश्क हो // -- सौरभ
"क्या अंदाज है ! क्या मिजाज हैं ! आपकी शुभकामनाओं के लिए हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय नीलेश…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service