"क्या? आपने धूम्रपान छोड़ दिया? ये तो आपने कमाल ही कर दिया।"
"आखिर इतनी पुरानी आदत को एकदम से छोड़ देना कोई मामूली बात तो नहीं।"
"सही कहा आपने, ये तो कभी सिगरेट बुझने ही नही देते थे।"
"जो भी है, इनकी दृढ इच्छा शक्ति की दाद देनी होगी।"
"इस आदत को छुड़वाने का श्रेय आखिर किस को जाता है?"
"भाभी को?"
"गुरु जी को?"
"नहीं, मेरी रिटायरमेंट को।"उसने ठंडी सांस लेते हुए उत्तर दिया।
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(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
धन्यवाद भाई बृजेश नीरज जी
रचना का मर्म समझने के लिए सादर आभार आ० सरिता भाटिया जी.
भाई राहुल देव जी, इस No comment से आपका क्या तात्पर्य है ? रचना स्तरहीन या घटिया है याकि रचना समझ नही आई? अच्छा होता अगर इस और इशारा किया होता। नहीं तो ऐसी फेसबुकिया टिप्प्णी (No comment) देने में अपने शब्दों को व्यर्थ न ही करते तो बेहतर होता। सप्रेम व सादर अनुरोध है कि टिप्प्णी करते हुए रचनाकार की नहीं तो कम से कम इस मंच की गरिमा का ध्यान तो अवश्य रखा करे।
यथार्थ परक कथा ........
सच! इन्सान की कुछ आदतें, समय के परिवर्तित होने पर अचानक बदल जाती है, चाहे उन आदतों के सहारे उसने अपने जीवन का बहुत लम्बा समय व्यतीत किया हो, बहुत सार्थक सन्देश देती लघुकथा पर बधाई स्वीकारें आदरणीय योगराज जी
वाह! क्या कहना! हार्दिक बधाई आ० योगराज जी!
बहुत ही गहन बात आदरणीय।।।।।।।।।।
सही है , रिटायर होने के बाद काफी आदते खुद ब खुद बदल जाती है । आपको हार्दिक बधाई आ0 योगराज जी ।
सुन्दर लघुकथा हेतु कोटिश: बधाई माननीय योगराज सर!!
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