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कुंडलिया छंद - लक्ष्मण लडीवाला

नीरसता में बदलता, नाशवान सुख-भाग,

सुख दुख में सम भाव रह,भौतिक सुख है रोग |

भौतिक सुख है रोग, अर्थ जीवन का जाने 
खुद का हो उद्देश्य, कृपा हम प्रभु की माने | 

कह लक्ष्मण कविराय, भरे मन में समरसता,
स्वच्छ करे मन भाव, तब न होगी नीरसता ||

(मौलिक व् अप्रकाशित)

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Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on December 6, 2013 at 2:44pm

हार्दिक आभार आपका श्री राम शिरोमणि पाठक जी | "भोग" शब्द त्रुटी वश भाग छप गया है | पंक्ति इस प्रकार है =

नीरसता में बदलता, नाशवान सुख-भोग,

सुख दुख में सम भाव रह,भौतिक सुख है रोग

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on December 6, 2013 at 2:41pm

हार्दिक आभार आपका श्री विजय मिश्र जी 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on December 6, 2013 at 2:39pm

कुंडलिया छंद सन्देशात्मक लगी, यह संतोष की बात है | आपका हार्दिक आभार श्री (डॉ) गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी और श्री

अरुण शर्मा "अनंत" जी |सादर

 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on December 6, 2013 at 2:37pm

छंद पसंद करने के लिए हार्दिक आभार आपका श्री श्याम नारायण जी वर्मा, और श्री शिज्जू शक्कर जी, 

Comment by ram shiromani pathak on December 6, 2013 at 1:06am

नीरसता में बदलता, नाशवान सुख-भाग,
सुख दुख में सम भाव रह,भौतिक सुख है रोग |तुकांत भी देख लें आदरणीय ..... सादर

Comment by विजय मिश्र on December 5, 2013 at 5:05pm
समरसता से मन स्वच्छ रहता है और उदास नहीं होता - अच्छी सीख , आभार लक्ष्मण जी .
Comment by अरुन 'अनन्त' on December 5, 2013 at 4:21pm

आदरणीय सर बहुत सुन्दर संदेशात्मक कुण्डलिया छंद रचा है आपने प्रवाह में थोड़ी कमी लगी बधाई स्वीकारें

Comment by ram shiromani pathak on December 4, 2013 at 8:58pm
सुन्दर प्रस्तुति आदरणीय लक्षमण जी। …… थोडा और समय देंगे तो और भी निखार आ जाएगा।।सादर
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 4, 2013 at 1:48pm

लड़ी वाला जी

कुण्डलिया अच्छी है और उसका  सन्देश भी i

बधाई हो i


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on December 4, 2013 at 11:09am

अच्छी कुण्डलिया है आदरणीय लड़ीवाला जी बधाई आपको

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