बह्र : मुतकारिब मुसम्मन सालिम
तमन्ना यही एक पूरी खुदा कर,
जमी ओढ़ लूँ मैं फलक को बिछा कर,
शुकूँ से भरी नींद अँखियों को दे दे,
दुआओं तले माँ के बिस्तर लगा कर,
बढ़ा हौसला दे मेरी झोपड़ी का,
बुजुर्गों के आशीष की छत बना कर,
अमन शान्ति का शुद्ध वातावरण हो,
मुहब्बत पिला दे शराफत मिला कर,
सितारों भरी एक दुनिया बसा रब,
अँधेरे का सारा जहाँ अब मिटा कर..
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
हार्दिक आभार आदरणीया कुंती जी
हार्दिक आभार आदरणीय अजय शर्मा जी
आदरणीय गिरिराज सर बहुत बहुत धन्यवाद आपका, फ़लक ओढ़ लूँ मै ज़मीं को बिछा कर बहुत ही उचित सलाह है मैंने स्वयं भी पहले यही लिखा था बाद में पलट दिया जानबूझ कर मैंने सोचा थोडा अलग करते हैं. अँधेरे की जगह अँधेरों कर लेता हूँ आदरणीय स्नेह यूँ ही बना रहे.
हार्दिक आभार आदरणीय आशुतोष सर
हार्दिक आभार आदरणीय गोपाल सर
हार्दिक आभार आदरणीया सरिता जी
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल...प्रिय अरुण अनंत जी
दिल से लिखे गए सभी के सभी अशआर सीधे दिल तक ही पहुँच रहे हैं
इन तीन अशआर नें तो काफी देर तक रोके रखा..
शुकूँ से भरी नींद अँखियों को दे दे,
दुआओं तले माँ के बिस्तर लगा कर,
बढ़ा हौसला दे मेरी झोपड़ी का,
बुजुर्गों के आशीष की छत बना कर,,.............बहुत सुन्दर
अमन शान्ति का शुद्ध वातावरण हो,
मुहब्बत पिला दे शराफत मिला कर,..........वाह!
बहुत बहुत शुभकामनाएं..
क्या बात क्या बात वाह वाह मजा आ गया भाई पड कर अरुन भाई बहुत अच्छा लिखते है आप
शुकूँ से भरी नींद अँखियों को दे दे,
दुआओं तले माँ के बिस्तर लगा कर,............मन को छू गया
बढ़ा हौसला दे मेरी झोपड़ी का,
बुजुर्गों के आशीष की छत बना कर,..............आत्मीय कामना
आदरणीय अरुण अनंत जी, हृदय को झंझोड़ देती गजल , दिली दाद कुबूल करें
अच्छी ग़ज़ल हुई है भाई अरूण जी बहुत बहुत बधाई आपको
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