भाव भँवर को पार कर , अर्पण कर सर्वस्व
जड़ता जो चेतन करे , उसका चिर वर्चस्व // 1 //
संवेदन से हीन जो , भाव भक्ति से मुक्त
प्रस्तर सम वह जड़ हृदय , अहंकार से युक्त // 2 //
मूढ़ व्यक्ति के मौन में , परिलक्षित अज्ञान
संत जनों के मौन का , मूल तत्व निज ज्ञान // 3 //
सजग बुद्धि को दृष्ट है , चित्त वृत्ति का नृत्य
ज्ञान अगन तप वृत्ति का , सधता है हर कृत्य // 4 //
नहिं अनंत में वृद्धि है , नहिं अनंत का ह्रास
जो सअंत निज जानता , पाता वह संत्रास // 5 //
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
आदरणीया प्राची दीदी वाह उत्तम दोहावली एक एक दोहा अपने आप में परिपूर्ण है दोहों में निहित भाव बरबस अपनी ओर आकर्षित करता है, इस सुन्दर दोहावली पर तहे दिल से बधाई प्रेषित है दी स्वीकार करें.
सुन्दर भाव लिए सार्थक और सात्विक दोहों के लिए हार्दिक बधाई डॉ. प्राची सिंह जी
आदरणीय डॉ प्राची जी सादर
इस सुन्दर दोहावली के लिए बहुत बहुत बधाई स्वीकार करें
सादर
दोहावली निहित भाव कथ्य पर स्वीकारात्मक अनुमोदन के लिए धन्यवाद आ० जितेन्द्र जी
सुंदर, सात्विक सन्देशप्रद , अंतर का आत्ममंथन करती दोहावली पर बधाई स्वीकारें आदरणीया डा. प्राची जी
आदरणीय अरुण निगम जी
दोहावली के कथ्य, दर्शन और भाव पर आपकी अनमोल सराहना के लिए हृदयतल से धन्यवाद.
सादर.
दोहावली अनुमोदन के लिए आभार आ० विजय निकोर जी
दोहावली पर आपकी शुभकामनाओं के लिए सादर धन्यवाद आ० कुंती जी
दोहावली पर आपके प्रश्नों का सहर्ष स्वागत है प्रिय राम शिरोमणि जी
//संवेदन से हीन जो , भाव भक्ति से मुक्त
प्रस्तर सम जड़ हृदय वह , अहंकार से युक्त // 2 // यहाँ आपने किस अर्थ में लिया है//
..........प्रस्तर शब्द तो कठोरता के लिए ही प्रयुक्त होता है, यहाँ भी तात्पर्य कठोरता से ही है.
//सजग बुद्धि को दृष्ट है , चित्त वृत्ति का नृत्य
ज्ञान अगन तप वृत्ति का , सधता है हर कृत्य // 4 // यहाँ अर्थ नहीं समझ पाया मै..//
....................जागृत बुद्धि ही मन में उठने वाली समस्त विचार तरंगों को देख पाती है... और जब मन की इच्छाएं बुद्धि की तार्किकता की कसौटी पर (ज्ञान की अग्नि में ) तपाई जाती हैं तब व्यक्ति का हर कर्म सधा हुआ ही होता है.
आपकी शुभकामनाओं के लिए धन्यवाद.
अतुल भाव-भण्डार है, आडम्बर से दूर
हर दोहा उत्कृष्ट है,दर्शन से भरपूर ||
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