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लघुकथा : कीमत (गणेश जी बागी)

शास्त्री जी बहुत खुश हैं, नए घर का आज गृह प्रवेश समारोह है ।  विदेश से कंस्ट्रक्शन मैनेजमेंट की पढ़ाई पूर्ण कर इकलौता बेटा भी कल घर पहुँच गया था ।
"पापा, गेस्ट आ गये हैं आप कहें तो डिनर स्टार्ट करवा दूँ"
"नहीं बेटा, कुछ विशिष्ट अतिथियों का मैं इन्तजार कर रहा हूँ पहले वो आ जाएँ फिर भोजन प्रारम्भ कराते हैं" शास्त्री जी ने बेटे को समझाया ।
"विशिष्ट अतिथि कौन पापा ?"
"इस घर को अपने श्रम और पसीने से बनाने वाले मिस्त्री और मजदूर"
"उफ्फ ! आप भी न पापा, उनको उनकी कीमत दे दी, बात ख़त्म"
"बेटा, पसीने की कीमत देने की औकात मुझ में क्या किसी में नहीं है, शायद यह बात मैनेजमेंट में नहीं पढ़ाई जाती ।

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment

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Comment by Neeraj Neer on December 10, 2013 at 9:48am

बहुत सुन्दर सन्देश प्रद लघुकथा  आदरणीय बागी जी .. 

Comment by Shubhranshu Pandey on December 10, 2013 at 9:46am

आदरणीय गणेश भैया, 

एक अलग विषय पर बहुत सुन्दर कथा.

आभासी दुनिया तैयार करने वाले उसमें विचरण करनेवाले श्रम को शर्म समझनेवाले पसीना केवल जिम या ट्रेडमिल पर ही निकालते हैं. कथा के अन्त ने कथा के सारे तत्वों को पूर्ण करता हुआ समाप्त हो रहा है. 

सादर.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on December 10, 2013 at 8:05am

वाह आदरणीय गणेशजी बहुत अच्छी बात कही है आपने कुछ बातें होती हैं जो मैनेजमेंट मे तो क्या किसी भी कोर्स में नही पढ़ाई जाती, इस लघुकथा के लिये बधाई स्वीकार करें


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 10, 2013 at 7:49am

आदरणीय गणेश बागी भाई , !!!!!! सच मे पसीने और आँसू की कीमत लगाना मुमकिन नही है न ही कीमत चुकाना मुमकिन है !!!!

 !!!!! आपकी सुन्दर लघुकथा के लिये आपको ढेरों बधाई !!!!!

Comment by vandana on December 10, 2013 at 6:49am

बेटा, पसीने की कीमत देने की औकात मुझ में क्या किसी में नहीं है, शायद यह बात मैनेजमेंट में नहीं पढ़ाई जाती ।

सच कहा आपने आदरणीय गणेश जी  इस मैनेजमेंट ने तो भावधारा को सुखा कर ही रख दिया है किन्तु ऐसी रचनाएं ही नमी को बचाकर लुप्त झरनों को पुन:प्रस्फुटित होने  की आशा को जीवित रखती हैं 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by sharadindu mukerji on December 10, 2013 at 1:49am
बहुत सुंदर रचना आदरणीय बागी जी. आप लघुकथा कहिये मैं कहूंगा एक कविता लघुकथा बनकर निकल आयी है आपके दिल से. बहुत दिन बाद एक वास्तविक सुंदर रचना दिखी इस विधा में, इस मंच पर. मेरा नमन. सादर.
Comment by ram shiromani pathak on December 9, 2013 at 11:28pm

जय हो आदरणीय वाह क्या चित्रण किया  है  .... हार्दिक बधाई आपको 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 9, 2013 at 11:13pm

बहुत बहुत आभार आदरणीया गीतिका वेदिका जी |


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 9, 2013 at 11:12pm

सराहना हेतु बहुत बहुत आभार आदरणीय जीतेन्द्र गीत जी |


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 9, 2013 at 11:10pm

बहुत बहुत आभार आदरणीया राजेश कुमारी जी, आपकी प्रतिक्रिया उत्साहवर्धन करती है |

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