गाली देते लोग जो , बोलें कभी सटीक,
गाली या अपशब्द क्या, लगते प्रेम प्रतीक ?
लगते प्रेम प्रतीक, कूल क्या उन्हें समझना
उनका ही उपहास, समझते जिनको अपना ||
यह तो है अपवाद, कहें सब प्रिय को साली.
स्नेह-प्रीति संवाद, न समझें इसको गाली ||
.
(2)
तू तू मै मै में करे, आपस में जो बात,
समझें इसको सभ्यता, या उनकी औकात |
या उनकी औकात, स्नेह की कहाँ निशानी
निखर सके व्यक्तित्व, अगर दिल हो इन्सानी |
कहे लक्ष्मण शब्द, सभ्य-कुल में जो जन्मे
मन में हो सद्भाव, करे क्यों तू तू मै मै ||
(मौलिक व् अप्रकाशित)
Comment
दोनों कुंडलिया छंद आपके सुझावानुसार पुनः संशोधित कर एडिट कर रहा हूँ आदरणीय | आपका हार्दिक आभार
दोनों कुण्डलियों में से निम्नलिखित इन तीन पदों को देख लें, आदरणीय -
लगते दमित प्रतीक, उनको न कूल समझना
निखर सके व्यक्तित्व, झलके भाव इन्सानी |
रखते जो सद्भाव, करते न तू तू मै मै ||
दोनों कुण्डलियाँ के सभी पदों की कुल मात्राओं पर आप स्वयं दृष्टि डाल लेंगे ऐसा विश्वास है.
सतत प्रयासरत रहने के लिए सादर धन्यवाद
छंद पसंद करने के लिए हार्दिक आभार आदरणीय श्री विजय निकोरे जी
सुन्दर छंद के लिए बधाई।
छंद पसंद करने के लिए हार्दिक आभार आदरणीया अनुपमा बाजपेई जी
सुंदर भाव संप्रेषित करती रचना , बधाई आपको आ० लक्ष्मण जी ।
आपका हार्दिक आभार श्री सूबे सिंह सुजान जी, श्री राम शिरोमणि पाठक जी, श्री गिरिराज भंडारी जी और आदरणीया वन्दना जी
आदरणीय लक्ष्मण भाई , शिल्प का ज्ञान नही है , सुन्दर सन्देश देती रचना के लिये आपको बधाई !!!!!
बहुत सुन्दर सन्देश आदरणीय
सुन्दर कुंडलियां छंद आदरणीय। ..... हार्दिक बधाई आपको
एक निवेदन है कहीं कहीं गेयता भंग है उसे देख लीजियेगा और
जिन्हें समझते अपना। ... यहाँ 12 मात्राएँ हो रहीं है। ... सादर
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