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'साहेब हमरी किडनी ख़राब है  I  इलाजु चलि रहा है I  उनकी जगह हमरे लरिकऊ का नौकरी तो दिहेव मालिक पर अकेलु लरिका नोडा (नॉएडा) चला जाई तो हमार देखभाल कौन करी I  इसै हियें लखनऊ माँ जगह दै देव साहेब , नहीं तो ई बुढ़िया मरि जाई I

'हाँ साहेब !" बेटे ने भी हाथ जोड़कर मिन्नत की I

' ठीक है, तुम लोग बाहर जाओ I  मै कुछ करता हूँ  I" 

माँ-बेटे बाहर चले गए I 'थोड़ी देर में  माँ को बाहर छोड़ कर बेटा फिर अन्दर आया I

'येस?' - साहेब ने प्रश्नवाचक दृष्टि से देखा I

'सर,  मेरी माँ पढ़ी-लिखी नहीं है i मंदबुद्धि है I  उसे पता नहीं है कि यहाँ लखनऊ में कोई कैरियर नहीं है I  साहेब मुझे नॉएडा में ही ----'

मौलिक /अप्रकाशित

(संशोधित)

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Comment by Nilesh Shevgaonkar on December 10, 2013 at 4:02pm

सुंदर लघु कथा है .... बेटे द्वारा माँ को बेवकूफ कहना खल गया ..

Comment by Ravi Prabhakar on December 10, 2013 at 2:21pm

आदरणीय गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी,
सादर ।
युवा वर्ग के दोहरे चरित्र पर स्टीक कटाक्ष करती आपकी लघुकथा एकदम से दिल में उतर गई शानदार प्रस्तुतिकरण व प्रभावशाली भाषा शैली ने इसे और भी उत्तम बना दिया। हृदय तल से शुभइच्छाएं स्वीकार कर कृतार्थ करें। धन्यवाद

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