'साहेब हमरी किडनी ख़राब है I इलाजु चलि रहा है I उनकी जगह हमरे लरिकऊ का नौकरी तो दिहेव मालिक पर अकेलु लरिका नोडा (नॉएडा) चला जाई तो हमार देखभाल कौन करी I इसै हियें लखनऊ माँ जगह दै देव साहेब , नहीं तो ई बुढ़िया मरि जाई I
'हाँ साहेब !" बेटे ने भी हाथ जोड़कर मिन्नत की I
' ठीक है, तुम लोग बाहर जाओ I मै कुछ करता हूँ I"
माँ-बेटे बाहर चले गए I 'थोड़ी देर में माँ को बाहर छोड़ कर बेटा फिर अन्दर आया I
'येस?' - साहेब ने प्रश्नवाचक दृष्टि से देखा I
'सर, मेरी माँ पढ़ी-लिखी नहीं है i मंदबुद्धि है I उसे पता नहीं है कि यहाँ लखनऊ में कोई कैरियर नहीं है I साहेब मुझे नॉएडा में ही ----'
मौलिक /अप्रकाशित
(संशोधित)
Comment
सुंदर लघु कथा है .... बेटे द्वारा माँ को बेवकूफ कहना खल गया ..
आदरणीय गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी,
सादर ।
युवा वर्ग के दोहरे चरित्र पर स्टीक कटाक्ष करती आपकी लघुकथा एकदम से दिल में उतर गई शानदार प्रस्तुतिकरण व प्रभावशाली भाषा शैली ने इसे और भी उत्तम बना दिया। हृदय तल से शुभइच्छाएं स्वीकार कर कृतार्थ करें। धन्यवाद
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